यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

फागुन में बदली छायी है

फागुन  में बदली छायी है

हाय घटा घिर के आयी है

इंद्र धनुष भी दिया दिखाई

देवों  को   होली  लायी है

 

बादल भी  होली खेलेंगे

इंद्र धनुष  से  रंग रेलेंगे

पानी के अधिपति वे ही हैं

पिचकारी  हजार ठेलेंगे

 

धरती रंग  बिरंगी नभ भी

बच्चे खेल  रहे  हैं  अब  भी

रंगों  जैसा  ही  जीवन  है

करें शिकायत ये जग तब भी

 

जैसे  देव  रंगीले होते

वैसे मनुज छबीले होते

दोनों के स्वभाव मिलते हैं

रिश्ते सभी रसीले  होते

 

पवन तिवारी

१३/०३/२०२१

 

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