यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 11 अप्रैल 2020

प्रकृति के प्रताप को


प्रकृति के प्रताप को प्रकोप तुम समझ रहे
और निज  प्रकोप को  प्रताप  ही कहते रहे
शर्म किन्तु लेशमात्र  भी  तुम्हें आयी नहीं  
विकास का लगा के पट विनाश खेलते रहे

जिसने  दी  छाँव  तुम्हें   उसे    काटते   गये
जिसने  सच  बोला  उसी  को  डाँटते  गये
नदी नाले ताल झील जल के जो भी श्रोत थे
निज अहं  व स्वार्थ में उन्हीं को पाटते गये

जो  हमारे  गर्व  के  पहाड़  थे  ढहा  दिए
स्वास्थ्य के अरण्य श्रोत को भी तुम जला दिये
ये  गगन  जो  प्रेरणा व  हर्ष का प्रतीक था
उसको भी विषाक्त  धुंध  लेपकर मिटा दिये

नभ  जल  व धरती  को  त्रास दिए जा रहे
जिस प्रकृति ने है  पाला  उसको ही खा रहे
अब जो  सहनशीलता  जवाब उसकी दे रही
कोस  रहे  हो तिस  पर  हाय  मरे जा रहे

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com  




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