यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 15 मार्च 2020

बेटियाँ


बेटियाँ,  बिटियाँ,   बेटियाँ,  बेटियाँ
प्रेम  से  हैं  खिलाती  यही रोटियाँ

इनसे ही  रक्षाबंधन  का  त्योहार है
इनसे ही प्रेम का जग में व्यवहार है
दो कुलों की यही बनती हैं ज्योंतियाँ
बेटियाँ,  बिटियाँ,  बेटियाँ,  बेटियाँ

प्रेमिकायें  यही, ये  ही हैं  पत्नियाँ
ये ही माँ हैं, यही  प्यारी  मौसियाँ
सारे रिश्तों की बुनती यही आशियाँ
बेटियाँ,  बिटियाँ,  बेटियाँ,  बेटियाँ

प्रेम की भूखी हैं, उसमें खो जाती हैं
जिसके घर जाती हैं उसकी जाती हैं
ये ही हैं जो  नहीं मानती  जातियाँ
बेटियाँ,  बिटियाँ,  बेटियाँ,  बेटियाँ

सारी इज्ज़त का ठेका इन्हें ही मिला
कोई ग़लती  करे  भोगें ये ही सिला
सारे रिश्तों की इनपे सिंकी  रोटियाँ
बेटियाँ,   बिटियाँ,  बेटियाँ, बेटियाँ



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८


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