यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 1 मार्च 2020

ख़्वाबों में भी ख्वाब


ख़्वाबों में भी  ख्वाब   आने  लगे हैं
कि जब से वो ख्वाबों में आने लगे हैं
तभी से  जमाने की  बदली  हैं नज़रें
जमाने  को  अब हम दीवाने  लगे हैं

आज-कल तो मंदिर भी  जाने लगे है
हैं  बेसुरे  फिर  भी  गाने  लगे  हैं
बदलाव ऐसा कि  हम भी अचम्भित
सिद्धांत   अपने   जलाने   गले  हैं

दिल से लगा  दिल  लगाने लगे हैं
कि  बातें  पुरानी  भुलाने  लगे हैं
कभी प्यार के हम भी दुश्मन बड़े थे
अब प्यार  पावन  बताने  लगे हैं

प्यार की हवा जब से खाने  लगे हैं
जैसे  आसमानों  पे  छाने  लगे हैं
सब कुछ दिखे खुशनुमा खुशनुमा है
सितम दोस्तों  पे भी  ढाने लगे हैं

अपनों से कितने ही ताने लगे हैं
फिर भी जी रिश्ते निभाने लगे हैं
प्यार बड़ा जादू है बस इतना समझा
कि खतरे पे खतरे उठाने लगे हैं

अब खुद भी खुद को जो भाने लगे हैं
समझने  में  ये  ही  जमाने लगे हैं
इक बार प्यार सबको होना  जरुरी है
प्यार में ही ईश्वर  को  पाने लगे हैं


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
    


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