यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

रेत के शहर में ज्यादा सोचा नहीं


रेत के शहर में ज्यादा  सोचा नहीं
चाहा इतना कि दो बूँद पानी मिले
मैं भटकता रहा उम्र भर हर जगह
प्रेम की एक ज़िन्दा  कहानी मिले

गैर  ही  आज गैरों  की  बातें करें
बात  अपनी ही अपनी ज़ुबानी मिले
चलने को चल रहे अनगिनत पाँव हैं
चाल ऐसी कि  जिसमें  रवानी मिले

शाम अक्सर सुहानी तो मिल जाती है
चाहता  दोपहर   भी   सुहानी  मिले
मिलने को प्रेम में तो बहुत मिल रहा
चाहता  कोई   मीरा   दीवानी  मिले  

नयी मिलने को चीजें बहुत मिल रही
चाहूँ  कोई   निशानी  पुरानी  मिले
लोग  देने  को  भेंटें  बहुत  दे रहे
राम  मुदरी सी  कोई निशानी मिले

प्यार तो प्यार है देश से पर अलग
राष्ट्र सेवा की बस  जिंदगानी मिले
होने को  तो  जवाँ हैं  करोड़ों मगर
भगत शेखर सी हमको जवानी मिले



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  



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