यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 9 जनवरी 2020

ना तुम्हें लड़ना है


ना तुम्हें लड़ना है ना ही झगड़ना है
बस बढ़ते रहना किसी से न डरना है
मंजिल तो मिलनी है मंजिल को मिलना है
चलते चलते बढ़ते बढ़ते चाँद पे तुम्हें चढ़ना है

संघर्षों का दिया जलाए रखना है
उसके उजाले जीत के स्वाद को चखना है
उजले उजले बादल में पानी भरना
नीला होकर फिर रिमझिम-रिमझिम गिरना

ऊँची चोटी पर हँसते ही चढ़ जाना
अपने हाथों से ही तिरंगा फहराना
अपने हाथों पर ही भरोसा रखना है
चंदा, बादल, पर्वत सबको चखना है

पानी पर पानी लिखने वाले हो तुम
याद दिलाने आया हूँ तुम कहाँ हो गुम
जीवन अच्छा इतना भी आसान नहीं
जीवन कांटो वाला प्यारा सा है कुसुम

जग को जीत सको ये तुम में क्षमता है
जीत का तुम पर शाल-दुशाला जमता है
तुम हो कौन बताने इतना आया हूँ
तुम हो हीरा यही जताने आया हूँ

अच्छा चलता हूँ मैं फिर से आऊँगा
जीत के आओगे जब तब मैं आऊँगा
भूल न जाना मुझे सबक ये भी तो है
कुछ भी हो इतिहास उसी का जीता जो है

पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८  


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें