यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 22 नवंबर 2018

समय ने ऐसा घसीटा


समय  ने ऐसा  घसीटा  अस्थियाँ  तक छिल गयी
बोलती  बहुबचन  जिह्वा  वो भी  देखो सिल गयी
ये न पूछो  पलकों ने  कितने कहाँ  शबनम गिराये
नजदीकियों  में  ही बहुत  सी  दूरियाँ हैं मिल गयी

जो भी थे सम्बन्ध  उर के मस्तिष्क  से जुड़  गये
जिनको समझा  अपना था वो पंछी बन के उड़ गये
समय के इस खेल ने प्रतिक्षण मुझे विस्मृत  किया
रक्त  के  सम्बन्ध  थे  जो  देख  करके मुड़ गये

स्वप्न  प्यारे  जो  लगे  थे  उनसे  अब  डरने  लगे
प्रेम  में  जीते  थे  हम  अब  प्रेम में  मरने लगे
रात्रि  में  भी  स्वप्न  के भय से हैं हम सोते नहीं
सुन्दरी  के  रूप  अब  डायन  से  हैं  लगने लगे

जो  इशारे  समझते  थे  अब  कहा  समझे  नहीं
जो  अकेले  शाम  में  भी  मेरे  बिन निकले नहीं
उनके  तेवर  इस  क़दर कुछ चढ़ गये हैं क्या कहें
अब जमाना हमसे है, तुम क्या हो, कुछ तुमसे नहीं



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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