यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 24 अक्तूबर 2018

अपेक्षा















जितनी  रहे  अपेक्षा , उतना  ही  मिले  दुःख
बिन  अपेक्षा  के  स्वयं , आकर  मिले  सुख
तेरा , मेरा , इसका , उसका , अपना , पराया
बिन  सोचे  पथ  पर  बढ़े तो, हँसता रहे मुख

अपने पराये के चक्कर में, हम चक्कर बन जाते
चलते - चलते अपनों के कारण भी हैं गिर जाते
छोड़ आस जग की निज पौरुष, पर विश्वास रहे
फिर इक दिन जग चल पड़ता तुम जिधर-२जाते

हो स्पष्ट  लक्ष्य  जीवन  में , निज  विश्वास रहे
इधर - उधर की बातों पर ना तनिक भी ध्यान रहे
रहे पराया या अपना कहता हर कोई कुछ ना कुछ
पर  दृढ़  रहे , रहे  बढ़ते  तो, दुश्मन  खेत  रहे

हो  महान  यदि  लक्ष्य तो  बहु  बाधाएँ आती हैं
लगता  है  बढ़ते – चलते , साँसें  रुक  जाती  हैं
कभी - कभी  ऐसा  लगता  है  काम  नहीं होगा
पर   दृढ़ता  के  आगे   बाधा   मार  खाती  है


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें