बुधवार, 24 अक्तूबर 2018

अपेक्षा















जितनी  रहे  अपेक्षा , उतना  ही  मिले  दुःख
बिन  अपेक्षा  के  स्वयं , आकर  मिले  सुख
तेरा , मेरा , इसका , उसका , अपना , पराया
बिन  सोचे  पथ  पर  बढ़े तो, हँसता रहे मुख

अपने पराये के चक्कर में, हम चक्कर बन जाते
चलते - चलते अपनों के कारण भी हैं गिर जाते
छोड़ आस जग की निज पौरुष, पर विश्वास रहे
फिर इक दिन जग चल पड़ता तुम जिधर-२जाते

हो स्पष्ट  लक्ष्य  जीवन  में , निज  विश्वास रहे
इधर - उधर की बातों पर ना तनिक भी ध्यान रहे
रहे पराया या अपना कहता हर कोई कुछ ना कुछ
पर  दृढ़  रहे , रहे  बढ़ते  तो, दुश्मन  खेत  रहे

हो  महान  यदि  लक्ष्य तो  बहु  बाधाएँ आती हैं
लगता  है  बढ़ते – चलते , साँसें  रुक  जाती  हैं
कभी - कभी  ऐसा  लगता  है  काम  नहीं होगा
पर   दृढ़ता  के  आगे   बाधा   मार  खाती  है


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें