गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

गर्मी में चन्दन हो जाऊँ













गर्मी  में  चन्दन  हो जाऊँ
प्रेम तुम्हारा  जो  मैं  पाऊँ
आती हो सोच में जब  तुम
खिलकर  मैं पंकज हो जाऊँ

प्रेम में  कितनी  शक्ति है
प्रेम में  कितनी  भक्ति है
रोगशोक  का नाश करे वो
प्रेम वो मन्त्र  वो सूक्ति है

मुरझाये वो मुख को खिला दे
हँसते - हँसते गरल  पिला दे
जनम - जनम के हों बैरी जो
ऐसों  को  भी  प्रेम मिला दे

तुमसे  प्रेम  हुआ है जब से
ये सब  जाना  माना तब से
सच्चे  पथ पर अब आया हूँ
जाने  भटक रहा था कब से

अब निज में खोया रहता हूँ
सोये में  जगता  रहता  हूँ
दिवस रैन सब  एक लगे हैं
प्रतिक्षण प्रेम लोक रहता हूँ

प्रेम ने  मुझको पावन कर दिया
वर्षा में  मुझे  सावन कर दिया
ऋतु  वसंत  सा  लगे है जीवन
अवध सा उर मनभावन कर दिया

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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