यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2018

जो मौक़ा हाथ आये तो


जो मौक़ा हाथ  आये तो  निकम्मे बैठे हँसते हैं
निकल जाए जो मौक़ा आह करके हाथ मलते हैं

कभी  जब  वक्त  आता  जिंदगी  में  इम्तहानों का
जिन्हें तुम दोस्त कहते हो फ़क़त परिचित निकलते हैं


कि जिनकी  दोस्ती  पर  नाज़ होता है हमें अक्सर
नाज़ का वक्त आने पर वे मिलकर भी न मिलते हैं


बुरा  जो  वक्त  आया  तो मैं आया दोस्तों के पास
रहे  सब  चुप  कहा मैंने कि अच्छा दोस्त चलते है

है पलते सांप अस्तीनों में खालिस सच नहीं अब ये
बहुत  से दोस्त भी हैं अब जो अस्तीनों में पलते हैं


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें