मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018

जो मौक़ा हाथ आये तो


जो मौक़ा हाथ  आये तो  निकम्मे बैठे हँसते हैं
निकल जाए जो मौक़ा आह करके हाथ मलते हैं

कभी  जब  वक्त  आता  जिंदगी  में  इम्तहानों का
जिन्हें तुम दोस्त कहते हो फ़क़त परिचित निकलते हैं


कि जिनकी  दोस्ती  पर  नाज़ होता है हमें अक्सर
नाज़ का वक्त आने पर वे मिलकर भी न मिलते हैं


बुरा  जो  वक्त  आया  तो मैं आया दोस्तों के पास
रहे  सब  चुप  कहा मैंने कि अच्छा दोस्त चलते है

है पलते सांप अस्तीनों में खालिस सच नहीं अब ये
बहुत  से दोस्त भी हैं अब जो अस्तीनों में पलते हैं


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com



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