यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

युवा साहित्यकार पवन तिवारी के व्यक्तित्व, कृतित्व पर चर्चा एवं साहित्य भूषण सम्मान

मुंबई। युवा साहित्यकार, कवि एवं पत्रकार पवन तिवारी के जीवन संघर्ष और लेखन पर समग्रता में चर्चा का आयोजन ठाणे (प.) के जिला परिषद मुख्यालय के पास मराठी ग्रन्थ संग्रहालय के सभागृह में 14 अक्टूबर शाम 4.30 किया गया। कार्यक्रम का आरम्भ माँ शारदे की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन से हुआ. वंदना श्रीवास्तव ने सुंदर सरस्वती वंदना प्रस्तुति की. उसके बाद पवन तिवारी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा हुई. तदन्तर उन्हें प्रशस्ति पत्र,स्मृति चिन्ह,शाल,श्रीफल,पुष्पगुच्छ देकर साहित्य भूषण सम्मानित किया गया.इस अवसर पर भागवताचार्य स्वामी विदेह महाराज ने इस अवसर पर उन्हें आशीष से विभूषित किया. मुख्य
 वक्ताओं में आरएसएस विचारक दयाशंकर त्रिपाठी, महाराष्ट्र साहित्य अकादमी सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित रमेश यादव,प्रसिद्द अधिवक्ता आर. पी. गुप्ता, समाजसेवी डॉ बाबूलाल सिंह , दैनिक नवभारत के वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश मिश्र, वरिष्ठ कवि, गीतकार अबोध चतुर्वेदी जी ने पवन तिवारी के जीवन संघर्ष, उनके व्यक्तित्व,उनकी पत्रकारिता, उनके साहित्यिक लेखन पर खुलकर अपनी बात रखी. कि कैसे पवन तिवारी दिन में मजदूरी कर और रात को नाईट स्कूल में पढ़ते हुए इस मुकाम तक पहुँचे. सादा जीवन उच्च विचार  को उन्होंने अपनाया. कभी सिद्धांतों से समझौता नही किया. पैंट शर्त वाले,पाश्चात्य संस्कृति के दिखावे वाले जमाने में अपनी संस्कृति के प्रति समर्पित धोती कुर्ता पहन कर चलने वाले युवा साहित्यकार के बारे में लोग अनुमान लगाने में अक्सर धोखा खा जाते हैं. वे इनकी वेशभूषा से अक्सर इन्हें कर्मकांडी पुरोहित समझ लेते हैं. इससे हमारी संस्कृति की ह्रास का भी पता चलता है. इस पावन साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच एवं प्रेमांजलि साहित्य संस्था के संयुक्त तत्वावधान में गरिमापूर्ण तरीके से सम्पन्न हुआ । इस अवसर पर उनकी जीवन साथी सीमा तिवारी बच्चे आदित्य और आराध्या, भाई हेरम्ब तिवारी भी उपस्थित थे.







तीसरे चर्चा वाले सत्र में कार्यक्रम में आये कवियों ,लेखकों,बुद्धिजीवियों ने पवन तिवारी के लेखन और व्यक्तित्व पर अपनी बात पूरे मन से रखी,.जिनमें प्राध्यापक दिनेश पाठक,  भाभा अनुसंधान के पूर्व अभियंता डॉ सुरेश, वायदा बाजार के पूर्व उप निदेशक एवं व्यंगकार डॉ सतीश शुक्ल, एयर इण्डिया के पूर्व उप प्रबन्धक एवं लघु कथाकार सेवा सदन प्रसाद, वरिष्ठ कवि विश्वम्भर दयाल तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार कर्ण हिन्दुस्तानी, मराठी -हिन्दी लेखक, अनुवादक लेखराज जी, कवियों में उमेश मिश्र, आभा दवे, अली हाशमी जी,श्यामसुंदर शर्मा जी,वरिष्ठ शायर नादान जी, दुर्गा गुप्ता, मंजू गुप्ता,रजनी साहू, वरिष्ठ पत्रकार श्यामधर पाण्डेय जी जैसे अनेक बुद्धिजीवी रहे . कार्यक्रम के संयोजक अरविंद पांडेय के अनुसार इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य युवाओं, संघर्षशील लोगों के प्रेरणा स्रोत बन रहे पवन तिवारी की रचना धर्मिता और संघर्ष की कहानी आम युवा तक पहुँचाना था ताकि वे संघर्ष को प्रेरित हो सकें। पवन ने 12 वर्ष की उम्र से लेखन आरम्भ किया, वह भी ठेठ देहात से मुम्बई तक का सफ़र बिना किसी सहारे के. 1998 में 24 मई को मुंबई आये पवन तिवारी का पहला उद्देश्य अपनी बीमार माँ की दवा कराना था ,जिसमें वे 1999 में सफल रहे. आज उनकी माँ स्वस्थ हैं.जिसे वे अपनी आज तक की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं. इस बीच उनका लेखन भे जारी रहा. किन्तु वर्ष 2005 में आये उनके पहले कहानी संग्रह चवन्नी का मेला से पहचान मिली. साथ ही वर्ष 2016 में आये उनके पहले ही उपन्यास  "अठन्नी वाले बाबूजी" के लिए मिले अकादमी पुरस्कार ने उन्हें नई ऊँचाई दी.
उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर [ फैज़ाबाद]  जनपद के जहाँगीर गंज क्षेत्र के अलाउद्दीनपुर गाँव में एक किसान परिवार श्री चिंतामणि तिवारी के घर में जन्में पवन तिवारी का शहर से कभी कोई नाता नहीं था. जिले से 100 किमी सुदूर गाँव का लड़का जिसके घर और गाँव में कभी भी कहीं किसी प्रकार का साहित्यिक माहौल नहीं था ,वहाँ साहित्य की लौ जलाना १२ वर्ष की उम्र में साधारण कार्य नहीं है. वह भी ८ भाई-बहनों के बीच, जहाँ पहली लड़ाई रोटी के लिए थी. इन सब विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पवन ने गाँव से मुंबई तक का सफर किया और अपने पहले कहानी संग्रह चवन्नी का मेला से चर्चित हो गये, 20 वर्ष में संपादक, 22 वर्ष में किताब आना, एक दर्जन पत्र पत्रिकाओं का सम्पादन 2500 से अधिक लेख, रेडियो और चैनल से लेकर ई मीडिया तक सब जगह उन्होंने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई। दिन में काम नाइट स्कूल में पढ़ाई करके यहाँ तक का सफर तय करना इस उम्र में निश्चित ही प्रेरणादायी है। ऐसे में ऐसे व्यक्तित्व का सम्मान किया जाना हमारी दोनों संस्थाओं के लिए गौरव पूर्ण बात है. मुंबई,ठाणे में आज अनेक कार्यक्रम होने के बावजूद इतने बुद्धिजीवियों,साहित्यकारों, कवियों,चिंतकों,विचारकों ,साहित्य प्रेमियों का आना पवन तिवारी के बड़े व्यक्तित्व को दर्शाता है.

 यह संभवतः पहला अवसर भी है जब किसी इतने युवा साहित्यकार के व्यक्तित्व और कृतित्व पर वरिष्ठ जनों के बीच चर्चा का आयोजन किया और सब ने पवन तिवारी के संघर्ष ,लेखन और विद्वता को सराहा. अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच की अध्यक्ष अलका पाण्डेय.प्रेमांजलि साहित्य संस्था के अध्यक्ष विधु भूषण त्रिवेदी, संयोजक श्रीराम शर्मा,युवा कवि संयोजक अरविन्द पाण्डेय ने सभी आगंतुकों,अतिथियों के प्रति आभार जताया, साथ ही भविष्य में ऐसे अनेक प्रतिभाओं को आगे लाने, उन्हें सम्मानित करने का आश्वासन भी दिया.  

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