यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 18 जुलाई 2018

तुम्हें देखूँ जब भी


तुम्हें देखूँ जब भी तो लगता ऐसे
कि जैसे मेरा सब तुम्हारे लिए है
देखा सपन प्रेम का जो भी मैंने
ये नैनों का सपना तुम्हारे लिए है

रहा था मेरा जो सदा ज़िंदगी में
वो सब भी मेरा तुम्हारे लिए है
कैसे बताऊँ तुम्हें हद से चाहूँ
मेरा घर मेरा दिल तुम्हारे लिए है

तुम्हारे लिए गीत गाये ये मैंने
मेरी हर ग़ज़ल भी तुम्हारे लिए है
मेरी धड़कनों में तुम्हारा ही स्वर है
मेरी शाम-सुबह तुम्हारे लिए है

तुम्हारे लिए ही मेरा हँसना रोना
ये साँसों की गर्मी तुम्हारे लिए है
मेरा कुछ रहा ना हुआ सब तुम्हारा
ये मेरी ज़िंदगी बस तुम्हारे लिए है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

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