यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 15 जून 2018

चाहकर भी तुझे दिल को डरना पड़ा













चाहकर भी तुझे दिल को डरना पड़ा
प्यार पहला था सहमा मुकरना पड़ा

फिर तेरे प्रेम में मैंने क्या-क्या सुना
माँ- बहन - बाप से भी झगड़ना पड़ा

जब अकेले में खुद से मिला खुद ही मैं
अनगिनत बार खुद से ही लड़ना पड़ा

यूँ जवानी - जवानी पे  भारी  पड़ी
जोश को होश को फिर रगड़ना पड़ा

मैंने सोचा था बहकूँगा ना जोश में
बाहों में आ गयी सो बहकना पड़ा

मैं फिसलना नहीं चाहता था मगर
थी  बेकाबू जवानी  फिसलना पड़ा

इस कदर प्रेम में मैं दीवाना हुआ
जीते जी भी कई बार मरना पड़ा

तूँ मुझे छोड़ करके चली जब गयी
प्यार  में  तेरे झूठे  सँवरना  पड़ा

दोस्तों  ने तेरा  जिक्र  छेड़ा जो तो
यूँ चहकने का नाटक भी करना पड़ा


पवन तिवारी
सम्पर्क ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें