यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

लंका दहन












स्वरन  सभा नयना अभिरामा
हनुमत  देखे   बहुछवि  धामा  । ।

ब्रह्म्पास की फाँस बधेहु ते
रघुवर कारज  आस धरे ते । ।


सभा  बिसाल  देखि  हनुमाना
कीन्हेसि रावन बल अनुमाना । ।


देखि  कपीश सबहिं अकुलाए
क्रोध वसी  भय मारन  धाए । ।

सचिव कहे कपि हौ अति प्यारा
कसि  मारेसि  यह अच्छ कुमारा । ।


साहस  की करि  बहुत  बड़ाई
पुनि पूछा क्यों कीन्ह ढिठाई । ।


तनय  विषाद सोचि  कर रावन
क्रोध सहित तब कहेउ दसानन । ।


सुत वध कीन्ह तोहि भय नाहीं
लंकहु  जीति  सकेहु कोई  नाहीं । ।


केहि कारन  बध कीन्ह कुमारा
यहि  दुस्साहस  कउन  अधारा । ।


भृकुटि  तनी दस सिर तेहि डोले
कर   जोरी   तब    हनुमत  बोले । ।


प्रथम  प्रहार कीन्ह  सुत तोरे
अंग - प्रत्यंग लगे  बहु मोरे । ।


पुनि  निज रक्षा   हेतु प्रयासा
भयउ तोर सुत यमपुर वासा । ।


तेहि पर दूजा  सुर तुम पठयहु
ब्रम्ह्पास  बाँधेसु  लय  अवयहु । ।


निज रक्षा नहिं  कोउ अपराधा  
तापर सुत तुम्हार मोंहि बाधा । ।


रावन  कहेहु   तोर   का  हेतू
लंका पहुंचेहु कसि बिन सेतू । ।


राम  प्रताप  बिश्व  सब   गाई
जहाँ न रबि तहं प्रभु प्रभुताई । ।


सागर   नाहि    पार   प्रभुताई
प्रभु असीस तव कालहिं खाई । ।


राम सुजस  तिहुं लोकहि गाई
रामहिं   बरमहुँ    करइं  बड़ाई । ।


हे   दसआनन   छाडि  लड़ाई
देई सीता पुनि करहु मिताई । ।


बानर के मुखि  सुनि अस बचना
बोलेहु    अट्टहास     करि    रचना । ।


मूढ़   कपीस   तोंहिं  सुधि  नाहीं
हतहु प्रान यहि लगि जग माहीं । ।


यहु  महु  बीच  बिभीषनु आवा
करि प्रणाम पुनि आसन पावा । ।


सकल कथा कपि जानि बिभीषन
कर जोरी पुनि  उठि कहि आसन । ।


पूछ परम  प्रिय कपि के देहा
यहि पर इनकी अतिसय नेहा । ।


मति बध करहुं न मारहु ताही
पूछ   जलाई   देहुँ  प्रभु जाही । ।


बिनुहि  पूछ  बानर जब जाई
निज संग ताहिहि नाथ लजाई । ।


यह  प्रस्ताव   सभासद  भावा
सबहिं कहेउ पुनि आगि लगावा । ।


वसन  लपेटि  तेल  पुनि डारी
अगिन  लगाय दीन्ह सब तारी । ।


जलेउ  पूछ  गर्जेउ  हनुमाना
झटकि सबहिं धायहु बलवाना । ।


धाय  चढ़ेउ  पुनि कनक अटारी
उलटि-पुलटि एक-एक गृह जारी । ।


हाय करहिं धावहिं नर – नारी
जरत जात गृह बारिहि – बारी । ।


सारा  नगर   अनल  जस  होई
कहहिं सबहिं यह कपि नहिं कोई । ।


अति  भट्बीर  इंद्र  सम  होई
नहिं बल  अस  साधारण कोई । ।


भागहिं,धावहिं चहुँ दिसि सबहीं
नगर अनल से  बचिहैं  कबहीं । ।


रोवहिं  त्राहि   करहिं  गोहरावैं
यहि अवसर कोहु हमहिं बचावैं । ।


गृह - गृह धायहु जारेउ लंका
कपि  प्रताप चहुँ बाजउ डंका । ।


देखि  कपिहिं  जोरहिं बहु हाथा
क्षमा करहुं तुम्ह कौन हो नाथा । ।


तुम  अरि मोर नाहि मैं जाना
केहि अपराध हतेहु तुम प्राना । ।


नारि करहिं  बहु भांति प्रनामा
तजहुँ प्राण कपि नाम अनामा । ।


नगर  जरहिं सब पीटहिं छाती
जीवन  भर की जरि गै थाती । ।


कोसहिं लाख - लाख सब रावन
जरहिं नगर  बस सीतहिं कारन । ।


भभकि–धधकि लौ उठि  विकराला
पुरवासी   रोवहिं   तेहि   काला । ।


चहुँ दिस  लंका जारेहु कपि पति
किंकर्तव्य   भयहु  लंका  पति । ।


एकि भवन  बस बचेउ बिभीषन
लंकहि  मिटेउ  सकल आभूषन । ।


लंक   जारि   पुर  बाहर  भयऊ
पुनि कपि कूदि अब्धि मंह गयऊ । ।


पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com



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