यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 6 मार्च 2018

प्यास बुझी ना अपनों से











































प्यास बुझी ना दुनिया से तो लाचारी में यूं करता हूँ 
ऐसे में खुद ही खुद  को मैं , थोड़ा - थोड़ा पीता हूँ

जिन्दगी ख़ूब हुई है जबसे,नज़र भी लगती खूब है
इसी लिये टुकड़ों  में इसको थोड़ा – थोड़ा जीता हूँ

दुनियाँ की नज़रों में आकर कुछ भी करना मुश्किल है
दिल की जो चुपचाप मैं करता जग को लगता रीता हूँ

सब पीते हैं कम या ज्यादा कुछ ना कुछ तो पीते हैं
अपनी तुम्हें बताऊँ क्या मैं , मैं तो गम को पीता हूँ

उम्र निकल गयी आगे मुझसे , मैं पीछे नौजवां रहा
दिल की सुना,किया दिलदारी इसीलिये कम बीता हूँ  

नहीं किया अपमान किसी का,ना सम्मान कभी माँगा
ऐसे  में  टूटे  रिश्ते के नख़रे  कभी  नहीं  सीता हूँ


पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें