यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 23 जून 2017

ओह मैंने क्या देखा है



ओह मैंने क्या देखा है

जो देखा है पहली बार देखा है
एक खूबसूरती में अनेक खूबसूरती है
इस खूबसूरती से उसकी बाकी
सभी खूबसूरतियाँ उससे खूबसूरत हैं
वो सीने का उभार जहां
 नजर गई पहली बार ठहर सी गई
देखा जैसे सुंदर पठार इतना सुंदर पठार कि
मेरी नज़र शरमा आ गई
उस खूबसूरत पठार से नीचे
जो मेरी नजरें लुढ़की तो
पठार से लुढ़ककर खूबसूरत झरने और फिर

खूबसूरत छोटे से कुंड पर
ठहर गई मेरी नजरें
जो पठार से कम खूबसूरत नहीं थे
मैंने अपनी ठहरी नजरों को झिंझोड़ा
तो अचकचाकर वहां से जाकर
चेहरे पर गड़ गई

वो तो एक पूरी दुनिया था उसका चेहरा
मेरी नजरें मदहोश हो गई
उसके दोनों कानों में जैसे झूला पड़ा हो
और पास की जुल्फें पेंग मार रही हों
थोड़ी पलक झपकी तो
आंखों पर आंखे आकर टिक गई
उसमें मुझे मेरा चेहरा हिलता हुआ दिखा
जैसे झील में हिलता हुआ दर्पण
सब कुछ गजब था
एक से बढ़कर एक...

उसके ठीक नीचे एक मैदानी दालान
और फिर एक गुलाबी टापू
जिस पर ठहरने और
सोने का दिल करने लगा
उसी के बगल में नजर पड़ी तो
अजंता एलोरा सी सुंदर गुफाएं थी

गुफा के द्वार पर सोने का चक्र घूम रहा था
अद्भुत.. जी चाहा कि.. बस देखता रहूं पर
मुझे उसे देखना था पूरा का पूरा
दिन ढलता जा रहा था
उसके ठीक नीचे एक सुंदर सी
छोटी सी ढलान वाली दालान थी

उसके बाद तो एक मनमोहक
सुगंध से भरा द्वार दिखा
उसके दरवाजे के दोनों पल्ले
हरसिंगार के फूलों से दमक रहे थे
उन्हें देखते ही उन्हें चूमने का मन हुआ
कि फिर ख्याल आया कि

दरवाजा जब इतना खूबसूरत है तो
घर कितना सुंदर होगा
मैं वहीं रुक गया,
दरवाजा खुलने के इंतजार में
अब शाम हो गई है और मैं
अभी भी दरवाजा खुलने के इंतजार में हूं


एक खूबसूरती में बसी है इतनी खूबसूरती कि
इसे देखूँ कि महसूस करूं, कि समझूँ
ये सब चाहूं तो शायद
पूरी जिंदगी कम पड़ जाए
हाय ऐसी गजब की खूबसूरती
दुनिया में है कि यह खूबसूरती में इतनी खूबसूरतियाँ

हाय..ये दरवाजा खुल जाए
कोई दुआ करो... कोई दुआ करो...
शाम भी थक गई है, पांव भी थक गए हैं
और मैं प्यास के सागर में डूबता जा रहा हूं

 हाय ये दरवाजा खुल जाए कोई दुआ करो

पवन तिवारी 
poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क- 7718080978

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