यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 12 मार्च 2017

कभी सोंचा तुम्हें वे गर्भ में ही मार देते तो क्या होता
















जिन्हें तुम कल वृद्धा आश्रम छोड़ आये हो 
कभी सोंचा तुम्हें वे गर्भ में ही मार देते तो क्या होता

तुम उन्हें इक बार बोलने पर ही कहते हो चुप रहो
कभी सोंचा तुम्हें बचपन में बोलना न सिखाते तो क्या होता

जिस नौकरी पर गुरुर है तुम्हे आज बहुत
कभी सोंचा उन्होंने तुम्हारी ऊँची शिक्षा के लिए मकान गिरवी न रखा होता तो क्या होता

उनको ही उनके घर से तुमने कर दिया बेघर
कभी सोंचा तुमने ये घर उन्होंने न बनाया होता तो क्या होता

ग़र वे तुम्हारी परवरिश दिल-जान से न किये होते
कभी सोंचा तुम क्या होते, और ये मुकाम न होता, तो क्या होता

हर कागज़ पर तुम्हारे साथ उनका नाम जुड़ा है अब भी
कभी सोंचा यदि उन्होंने तुम्हें सिर्फ अपना नाम न दिया होता तो क्या होता 

पवन तिवारी

सम्पर्क-7718080978

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