यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 30 जनवरी 2017

आवारा लड़का























रात के11:30 बज रहे थे. कमल की अम्मा और बाऊजी बरामदे के बाहर आग के पास शांत बैठे थे.कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. अंधेरी रात में किधर भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. रह-रह कर कहीं दूर कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनाई दे रही थी.हां झींगुरों की आवाज़ बिना रुके अनवरत आ रही थी.पूस की प्रचंड ठंड के कारण आग बुझती जा रही थी.कमल के पिता लकड़ी के टुकड़े से आग को उलट-पुलट रहे थे,परंतु बोल नहीं रहे थे.करीब10 मिनट की लंबी चुप्पी के बाद अचानक कमल की मां बोली आखिर कब तक बैठे रहोगे.आग बुझ रही है.अब वह बुझ जाएगी खोदने से थोड़े जलती रहेगी. देखो, कैसे ठिठुर गए हो ! कोहरा भी शुरू हो गया है, चिंता करने से कुछ नहीं होगा. सुबह देखिएगा. चलिए सो जाइए. तुम जाओ सो जाओ. मैं बाद में जाकर सो जाऊंगा. कमल के पिता जी ने उत्तर दिया. इस पर कमल की मां बोली- अभी और कितना बाद होगा. बाद-बाद कह कर पूरी रात इसी कड़ाके की ठंड में वह भी खुले आसमान के नीचे गुजार दोगे. कहीं कुछ हो गया तो ! कमल के बाऊ बोले- मुझे कुछ नहीं होगा. जाओ चुपचाप सो जाओ. ज्यादा तिरिया चरित्तर मत बघारो, सब तुम्हारा किया धरा है बाबू-बाबू करके  तुमने ही उसकी आदत खराब कर दी. अब लोलो-चप्पो,लीपापोती करती हो. सारा गांव कहता है कि- अरे वह तो फलाने का लड़का एक नंबर का आवारा हो गया है. जब देखो घूमता रहता है. कभी टीवी,कभी गिल्ली-डंडा, कभी गोली खेलता रहता है. कोई अनुशासन नहीं है.इसको छ्डुवा छोड़ दिए हैं.फलाने अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते. तो आवारा नहीं होंगे तो क्या होंगे ? मालूम है... परसों मास्टर फुनकू से बतिया रहे थे. मैं साइकिल से जा रहा था. मुझे देख कर चुप हो गए.जब तक वह आ नहीं जाता मैं हिलूँगा नहीं. अब तुम जाओ, मेरा दिमाग मत खराब करो. नहीं तो... कहते-कहते चुप हो गए. इतना सुनना था कि कमल की मां उठकर बरामदे की तरफ चलते हुए बोली- हे भगवान कहां से कपूत पैदा हो गया. इससे अच्छा न दिया होता. कमल के बाऊजी फिर बोले- बस ! अब ज्यादा बरबराओ मत. जाओ, चुपचाप सो जाओ. रात के 12 बजे फिल्म खत्म हुई.गुड्डू कोठरी से निकल कर बरामदे में अपनी खाट पर आ गए.राजू टीवी के पास ही पुराने बेड पर सोते थे.सो वो अपनी जगह से हिले नहीं.सब ने अपनी-अपनी जगह पकड़ ली. बाहर के चार आदमी थे,जिनमें संतोष,कमल,अनिल और सदाशिव.अनिल और सदाशिव के पास टॉर्च थी.वह दोनों जन सड़क के पास अपनी आटा की चक्की पर सोते थे. सो वे आटा चक्की की तरफ चल दिए.संतोष भी धीरे से खिसक लिए,परंतु कमल गुड्डू के बरामदे के द्वार पर खड़ा होकर कुछ सोचने लगा. थोड़ी देर गुजर जाने पर गुड्डू बोले- क्या बात है कमल ? खड़े क्यों हो ? घर जाने में डर लग रहा है क्या ? कमल बोला- नहीं, राजू ने कोठरी के अंदर से आवाज दी.कमल तो दूसरे गांव से देर रात वीसीआर देखकर आता है. तो यहीं 10 कदम जाने में क्या डरना ? यह कोई, एक दिन की बात थोड़े है. यह हर शुक्रवार और शनिवार को फिल्म देखने आता है. चाहे कोई दूसरा आए या ना आए.एक भी पिक्चर छोड़ता नहीं. सब हीरो-हीरोइन को पहचानता है. इस के जितना तो मुझे भी नहीं मालूम. गुड्डू बोले- मुझे नहीं मालूम था कि इतना जानता है. इतनी रात को आकर पिक्चर देखता है, इसके घर का कोई बोलता नहीं !राजू बोले- बोलते तो ऐसे ही रहता.आप साल 6 महीने में 10 दिन के लिए गांव आते हो भइया, आप को क्या मालूम ? गुड्डू बोले- अच्छा ठीक है छोड़ो, यह बात कह कर कमल को बोले- टॉर्च दिखा दूं. कमल बोला- नहीं मैं चला जाऊंगा.इतना कहकर कमल बरामदे से बाहर आया और घर की तरफ चल दिया.घर के पास पहुंचने पर कमल ने पैर से चप्पल निकाल कर हाथ में ले लिया. ताकि चटर-पटर की आवाज न हो.  नहीं तो अगर बाबूजी जाग गए तो फिर खैर नहीं. चप्पल हाथ में लेकर कमल धीरे-धीरे आगे बढ़ा तभी मानों अचानक उसे करंट लग गया हो. कदम थम गए. वह जड़वत हो गया. क्योंकि सामने साल ओढ़े एक आदमी बैठा था. हल्की-हल्की आग की लालिमा दिख रही थी.चेहरा अंधेरे के कारण नहीं दिख रहा था,परंतु कमल को पूरा विश्वास था कि वह उसके बाऊ ही हैं.कमल कांपने लगा. चप्पल निकालने के कारण पैर के तलवों में भी ठंड तेजी से असर कर रही थी. काफी देर तक कमल मूर्तिवत खड़ा रहा.अचानक कमल के बाऊजी ने गला जोर से खँखारा रर खंखारने की आवाज सुनकर कमल के हाथ से चप्पल छूट कर जमीन पर गिर गई.चप्पल के गिरने की आवाज सुनकर कमल के बाऊजी चौंकें ! और आवाज किए. कौन है वहां ? कोई आवाज न सुनकर वह पुनः बोले- कौन है वहां ? और फिर उठ कर कमल की तरफ बढ़ गए. बाऊजी को पास आता देख कमल कांपते हुए करुण स्वर में धीमे से बोला- ‘मैं हूँ’. बाऊ जी बोले- ‘कमल’ इतनी रात तक कहां था. कमल चुप रहा. बाऊजी बोले- बोलता क्यों नहीं ? कहां था ? फिर भी कमल चुप रहा. बाऊजी क्रोध के वश हो कमल का कान पकड़कर जोर से ऐंठते हुए बोले- बताता है कि नहीं. जल्दी बोल, कहां गया था ? नहीं तो खाल उधेड़ लूंगा. जीना हराम कर दिया है तूने.जबकि सब के लड़के पढ़ाई के साथ-साथ घर का काम भी करते हैं, और इज्जत बात का भी ख्याल रखते हैं.एक तूं है कि नाक कटाने पर ही तुला रहता है. बोलता है कि नहीं.... इतना कहकर तेजी से पांच-छह थप्पड़ सौगात स्वरुप भेंट कर दिए और खींचते हुए आग के पास लाकर बिठाते हुए बोले- बोल,फिर घूमेगा. बोल.. नहीं तो अभी और मारूंगा. कमल सिसक कर रोने लगा. बाऊजी डांटते हुए बोले- चुप... चुप... बोलता है कि मारूं... बाऊ जी जैसे मारने के लिए हाथ उठाए, कमल कांपते हुए बोला- पिक्चर देखने गया था. बाऊजी पुनः बोले- पिक्चर देखने से पेट भरेगा.पिक्चर देखने से परीक्षा में पास हो जाएगा.बोल...फिर जाएगा... जल्दी बोल... फिर जाएगा.इतनी सर्द रात में ....तुझे ठण्ड भी नहीं लगती.... निमुनिया हो गया तो... दवा पिक्चर करायेगी.मेरे पास तो पैसा है नहीं....बैल बेंचकर तो मैं दवा कराने से रहा...और फिर बेंच भी दिया तो खेत तूं जोतेगा...   बता क्या करूँ तेरा... बोल .... कमल चुपचाप ... तू ऐसे नहीं बोलेगा कहकर... बाऊजी उठकर बरामदे की तरफ आए. बरामदे में अंधेरा था परंतु फिर भी बांस का डंडा हाथ में लग गया. फिर क्या उसी डंडे से धड़-धड़.... कई डंडे कमल पर प्रहार किए. कमल जोर-जोर से चिल्लाने लगा. अरे अम्मा... अरे अम्माहो... अम्मा जाग रही थी... बिस्तर छोड़कर दौड़कर बाहर आई. देखी कमल कांपते हुए कान पकड़कर जल्दी-जल्दी उठक-बैठक कर रहा था.अम्मा को देखकर कमल एक क्षण के लिए रुक गया. बाऊजी डांटते हुए बोले- रुका तो और मारूंगा. जल्दी-जल्दी से दंड-बैठक पूरा कर. फिर कमल की अम्मा की तरफ देखते हुए बोले- तुमको बोला था ना सो जाओ. तुम को नींद नहीं आती... तुम से रहा नहीं गया. अम्मा बोली- मैं तुम्हारी तरह कसाई थोड़ी हूं. मैं माँ हूँ.इतनी बेरहमी से पीट रहे थे.यह जोर-जोर से चिल्ला रहा था.इतनी रात हो गई है... पास-पड़ोस वाले क्या सोचेंगे ? सुबह भी पूछ सकते थे ? बाऊजी बोले- बस, अपनी सलाह अपने पास रखो. तुम्हारी इन्हीं सलाहों ने इसे ऐसा बना दिया है. आज के बाद यह घूमना छोड़ देगा या फिर इसका हाथ पैर तोड़ कर घर बिठा दूंगा. अम्मा बोली- कमल बेटा कान पकड़ कर बोलो, आज के बाद पिक्चर नहीं जाओगे. बोलो, बोल दो बेटा, परंतु कमल सिसकने के सिवा कुछ नहीं बोला. वह सोचने लगा, आज अगर बोल दिया कि फिर घूमने या पिक्चर देखने नहीं जाऊंगा,परंतु दिल नहीं मानेगा और मैं फिर जाऊंगा. तो फिर झूठ बोलने से क्या फायदा... अम्मा फिर बोली- चुप क्यों है ? बोल दे- बाऊजी आज के बाद नहीं जाऊंगा. नहीं तो बाऊजी अभी और मारेंगे. कमल की चुप्पी देख बाऊजी ने पुनः हाथ ऊपर उठाया.. तो अम्मा ने हाथ पकड़ लिया और बोली बस ! अब बच्चे पर हाथ मत उठाना.जान ले लोगे क्या ? फिर वे कमल से मुखातिब हुई और कहा,कान पकड़ कर बोल अब नहीं जाऊंगा. नहीं तो अब मैं मारूंगी. कान पकड़ कर कमल धीरे से रोते हुए बोला- अब घूमने नहीं जाऊंगा. बाऊजी डंडे को एक तरफ फेंकते हुए बोले- आज के बाद तूं घूमने जा... फिर देखता हूं... कहते हुए बाऊजी मड़ई में चले गए.अम्मा कमल का हाथ पकड़कर बरामदे वाली कोठरी में लाकर, रजाई के अंदर बिठाकर अंदर घर में चली गई. थोड़ी देर बाद आई तो एक हाथ में दिया और दूसरे हाथ में भोजन की थाली थी.
कमल अम्मा के गालों पर हाथ लगाते हुए बोला क्या सोच रही हो अम्मा ? यह साड़ी देखो... तुम्हारे लिए लाया हूं... अम्मा का ध्यान अचानक भंग हुआ. वह 4 साल पहले अतीत में चली गई. अम्मा को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि यह वही 4 साल पहले वाला कमल है. अतीत से बाहर निकलते हुए साड़ी हाथ में लेकर कमल को गले लगा लिया और आंखों से स्नेह के आंसू लुढ़क गए.ढाई साल बाद आज ही कमल मुंबई से आया है. छोटे भाई बहन मां सबके लिए अटैची भर कर सामान लाया है. बाऊजी के लिए भी जूता,स्वेटर और धोती भी लाया है.अब वह पहले वाला कमल नहीं रहा. अब बहुत कम बोलता है. पास पड़ोस के बच्चे जुट गए थे. बैग में से कमल ने रेवड़ी का पैकेट और मिठाई का थैला अम्मा को थमा दिया. अम्मा सभी बच्चों को रेवड़ी  और मिठाई बाँटने लगी.छोटे भाई-बहन अपना सामान देखकर खुश हो रहे थे तथा एक दूसरे से अच्छा बता रहे थे.इस बीच घंटी बजने की आवाज सुनाई दी. असल में बैलों के गले में बजी घंटी की आवाज़ थी. बाऊजी खेत की जुताई कर आ गए.हल को दीवार के सहारे खड़ा कर बाऊजी पीछे मुड़े तो कमल को अपने पैरों पर झुके पाए. यह दृश्य देखकर अम्मा बोली- देखे, मैं कहती थी ना, मेरा बेटा 1 दिन अच्छा काम करेगा. अब इसे कोई आवारा नहीं कहेगा. हमारा कमल बिल्कुल बदल गया. बाऊजी की भी आंखें भर आई और कमल को गले लगा लिया. पूरे ढाई साल बाद जो आया था.आंखें देखने को तरस गई थीं.
इति शुभम्
poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क- 7718080978

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