सोमवार, 30 जनवरी 2017

आवारा लड़का























रात के11:30 बज रहे थे. कमल की अम्मा और बाऊजी बरामदे के बाहर आग के पास शांत बैठे थे.कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. अंधेरी रात में किधर भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. रह-रह कर कहीं दूर कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनाई दे रही थी.हां झींगुरों की आवाज़ बिना रुके अनवरत आ रही थी.पूस की प्रचंड ठंड के कारण आग बुझती जा रही थी.कमल के पिता लकड़ी के टुकड़े से आग को उलट-पुलट रहे थे,परंतु बोल नहीं रहे थे.करीब10 मिनट की लंबी चुप्पी के बाद अचानक कमल की मां बोली आखिर कब तक बैठे रहोगे.आग बुझ रही है.अब वह बुझ जाएगी खोदने से थोड़े जलती रहेगी. देखो, कैसे ठिठुर गए हो ! कोहरा भी शुरू हो गया है, चिंता करने से कुछ नहीं होगा. सुबह देखिएगा. चलिए सो जाइए. तुम जाओ सो जाओ. मैं बाद में जाकर सो जाऊंगा. कमल के पिता जी ने उत्तर दिया. इस पर कमल की मां बोली- अभी और कितना बाद होगा. बाद-बाद कह कर पूरी रात इसी कड़ाके की ठंड में वह भी खुले आसमान के नीचे गुजार दोगे. कहीं कुछ हो गया तो ! कमल के बाऊ बोले- मुझे कुछ नहीं होगा. जाओ चुपचाप सो जाओ. ज्यादा तिरिया चरित्तर मत बघारो, सब तुम्हारा किया धरा है बाबू-बाबू करके  तुमने ही उसकी आदत खराब कर दी. अब लोलो-चप्पो,लीपापोती करती हो. सारा गांव कहता है कि- अरे वह तो फलाने का लड़का एक नंबर का आवारा हो गया है. जब देखो घूमता रहता है. कभी टीवी,कभी गिल्ली-डंडा, कभी गोली खेलता रहता है. कोई अनुशासन नहीं है.इसको छ्डुवा छोड़ दिए हैं.फलाने अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते. तो आवारा नहीं होंगे तो क्या होंगे ? मालूम है... परसों मास्टर फुनकू से बतिया रहे थे. मैं साइकिल से जा रहा था. मुझे देख कर चुप हो गए.जब तक वह आ नहीं जाता मैं हिलूँगा नहीं. अब तुम जाओ, मेरा दिमाग मत खराब करो. नहीं तो... कहते-कहते चुप हो गए. इतना सुनना था कि कमल की मां उठकर बरामदे की तरफ चलते हुए बोली- हे भगवान कहां से कपूत पैदा हो गया. इससे अच्छा न दिया होता. कमल के बाऊजी फिर बोले- बस ! अब ज्यादा बरबराओ मत. जाओ, चुपचाप सो जाओ. रात के 12 बजे फिल्म खत्म हुई.गुड्डू कोठरी से निकल कर बरामदे में अपनी खाट पर आ गए.राजू टीवी के पास ही पुराने बेड पर सोते थे.सो वो अपनी जगह से हिले नहीं.सब ने अपनी-अपनी जगह पकड़ ली. बाहर के चार आदमी थे,जिनमें संतोष,कमल,अनिल और सदाशिव.अनिल और सदाशिव के पास टॉर्च थी.वह दोनों जन सड़क के पास अपनी आटा की चक्की पर सोते थे. सो वे आटा चक्की की तरफ चल दिए.संतोष भी धीरे से खिसक लिए,परंतु कमल गुड्डू के बरामदे के द्वार पर खड़ा होकर कुछ सोचने लगा. थोड़ी देर गुजर जाने पर गुड्डू बोले- क्या बात है कमल ? खड़े क्यों हो ? घर जाने में डर लग रहा है क्या ? कमल बोला- नहीं, राजू ने कोठरी के अंदर से आवाज दी.कमल तो दूसरे गांव से देर रात वीसीआर देखकर आता है. तो यहीं 10 कदम जाने में क्या डरना ? यह कोई, एक दिन की बात थोड़े है. यह हर शुक्रवार और शनिवार को फिल्म देखने आता है. चाहे कोई दूसरा आए या ना आए.एक भी पिक्चर छोड़ता नहीं. सब हीरो-हीरोइन को पहचानता है. इस के जितना तो मुझे भी नहीं मालूम. गुड्डू बोले- मुझे नहीं मालूम था कि इतना जानता है. इतनी रात को आकर पिक्चर देखता है, इसके घर का कोई बोलता नहीं !राजू बोले- बोलते तो ऐसे ही रहता.आप साल 6 महीने में 10 दिन के लिए गांव आते हो भइया, आप को क्या मालूम ? गुड्डू बोले- अच्छा ठीक है छोड़ो, यह बात कह कर कमल को बोले- टॉर्च दिखा दूं. कमल बोला- नहीं मैं चला जाऊंगा.इतना कहकर कमल बरामदे से बाहर आया और घर की तरफ चल दिया.घर के पास पहुंचने पर कमल ने पैर से चप्पल निकाल कर हाथ में ले लिया. ताकि चटर-पटर की आवाज न हो.  नहीं तो अगर बाबूजी जाग गए तो फिर खैर नहीं. चप्पल हाथ में लेकर कमल धीरे-धीरे आगे बढ़ा तभी मानों अचानक उसे करंट लग गया हो. कदम थम गए. वह जड़वत हो गया. क्योंकि सामने साल ओढ़े एक आदमी बैठा था. हल्की-हल्की आग की लालिमा दिख रही थी.चेहरा अंधेरे के कारण नहीं दिख रहा था,परंतु कमल को पूरा विश्वास था कि वह उसके बाऊ ही हैं.कमल कांपने लगा. चप्पल निकालने के कारण पैर के तलवों में भी ठंड तेजी से असर कर रही थी. काफी देर तक कमल मूर्तिवत खड़ा रहा.अचानक कमल के बाऊजी ने गला जोर से खँखारा रर खंखारने की आवाज सुनकर कमल के हाथ से चप्पल छूट कर जमीन पर गिर गई.चप्पल के गिरने की आवाज सुनकर कमल के बाऊजी चौंकें ! और आवाज किए. कौन है वहां ? कोई आवाज न सुनकर वह पुनः बोले- कौन है वहां ? और फिर उठ कर कमल की तरफ बढ़ गए. बाऊजी को पास आता देख कमल कांपते हुए करुण स्वर में धीमे से बोला- ‘मैं हूँ’. बाऊ जी बोले- ‘कमल’ इतनी रात तक कहां था. कमल चुप रहा. बाऊजी बोले- बोलता क्यों नहीं ? कहां था ? फिर भी कमल चुप रहा. बाऊजी क्रोध के वश हो कमल का कान पकड़कर जोर से ऐंठते हुए बोले- बताता है कि नहीं. जल्दी बोल, कहां गया था ? नहीं तो खाल उधेड़ लूंगा. जीना हराम कर दिया है तूने.जबकि सब के लड़के पढ़ाई के साथ-साथ घर का काम भी करते हैं, और इज्जत बात का भी ख्याल रखते हैं.एक तूं है कि नाक कटाने पर ही तुला रहता है. बोलता है कि नहीं.... इतना कहकर तेजी से पांच-छह थप्पड़ सौगात स्वरुप भेंट कर दिए और खींचते हुए आग के पास लाकर बिठाते हुए बोले- बोल,फिर घूमेगा. बोल.. नहीं तो अभी और मारूंगा. कमल सिसक कर रोने लगा. बाऊजी डांटते हुए बोले- चुप... चुप... बोलता है कि मारूं... बाऊ जी जैसे मारने के लिए हाथ उठाए, कमल कांपते हुए बोला- पिक्चर देखने गया था. बाऊजी पुनः बोले- पिक्चर देखने से पेट भरेगा.पिक्चर देखने से परीक्षा में पास हो जाएगा.बोल...फिर जाएगा... जल्दी बोल... फिर जाएगा.इतनी सर्द रात में ....तुझे ठण्ड भी नहीं लगती.... निमुनिया हो गया तो... दवा पिक्चर करायेगी.मेरे पास तो पैसा है नहीं....बैल बेंचकर तो मैं दवा कराने से रहा...और फिर बेंच भी दिया तो खेत तूं जोतेगा...   बता क्या करूँ तेरा... बोल .... कमल चुपचाप ... तू ऐसे नहीं बोलेगा कहकर... बाऊजी उठकर बरामदे की तरफ आए. बरामदे में अंधेरा था परंतु फिर भी बांस का डंडा हाथ में लग गया. फिर क्या उसी डंडे से धड़-धड़.... कई डंडे कमल पर प्रहार किए. कमल जोर-जोर से चिल्लाने लगा. अरे अम्मा... अरे अम्माहो... अम्मा जाग रही थी... बिस्तर छोड़कर दौड़कर बाहर आई. देखी कमल कांपते हुए कान पकड़कर जल्दी-जल्दी उठक-बैठक कर रहा था.अम्मा को देखकर कमल एक क्षण के लिए रुक गया. बाऊजी डांटते हुए बोले- रुका तो और मारूंगा. जल्दी-जल्दी से दंड-बैठक पूरा कर. फिर कमल की अम्मा की तरफ देखते हुए बोले- तुमको बोला था ना सो जाओ. तुम को नींद नहीं आती... तुम से रहा नहीं गया. अम्मा बोली- मैं तुम्हारी तरह कसाई थोड़ी हूं. मैं माँ हूँ.इतनी बेरहमी से पीट रहे थे.यह जोर-जोर से चिल्ला रहा था.इतनी रात हो गई है... पास-पड़ोस वाले क्या सोचेंगे ? सुबह भी पूछ सकते थे ? बाऊजी बोले- बस, अपनी सलाह अपने पास रखो. तुम्हारी इन्हीं सलाहों ने इसे ऐसा बना दिया है. आज के बाद यह घूमना छोड़ देगा या फिर इसका हाथ पैर तोड़ कर घर बिठा दूंगा. अम्मा बोली- कमल बेटा कान पकड़ कर बोलो, आज के बाद पिक्चर नहीं जाओगे. बोलो, बोल दो बेटा, परंतु कमल सिसकने के सिवा कुछ नहीं बोला. वह सोचने लगा, आज अगर बोल दिया कि फिर घूमने या पिक्चर देखने नहीं जाऊंगा,परंतु दिल नहीं मानेगा और मैं फिर जाऊंगा. तो फिर झूठ बोलने से क्या फायदा... अम्मा फिर बोली- चुप क्यों है ? बोल दे- बाऊजी आज के बाद नहीं जाऊंगा. नहीं तो बाऊजी अभी और मारेंगे. कमल की चुप्पी देख बाऊजी ने पुनः हाथ ऊपर उठाया.. तो अम्मा ने हाथ पकड़ लिया और बोली बस ! अब बच्चे पर हाथ मत उठाना.जान ले लोगे क्या ? फिर वे कमल से मुखातिब हुई और कहा,कान पकड़ कर बोल अब नहीं जाऊंगा. नहीं तो अब मैं मारूंगी. कान पकड़ कर कमल धीरे से रोते हुए बोला- अब घूमने नहीं जाऊंगा. बाऊजी डंडे को एक तरफ फेंकते हुए बोले- आज के बाद तूं घूमने जा... फिर देखता हूं... कहते हुए बाऊजी मड़ई में चले गए.अम्मा कमल का हाथ पकड़कर बरामदे वाली कोठरी में लाकर, रजाई के अंदर बिठाकर अंदर घर में चली गई. थोड़ी देर बाद आई तो एक हाथ में दिया और दूसरे हाथ में भोजन की थाली थी.
कमल अम्मा के गालों पर हाथ लगाते हुए बोला क्या सोच रही हो अम्मा ? यह साड़ी देखो... तुम्हारे लिए लाया हूं... अम्मा का ध्यान अचानक भंग हुआ. वह 4 साल पहले अतीत में चली गई. अम्मा को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि यह वही 4 साल पहले वाला कमल है. अतीत से बाहर निकलते हुए साड़ी हाथ में लेकर कमल को गले लगा लिया और आंखों से स्नेह के आंसू लुढ़क गए.ढाई साल बाद आज ही कमल मुंबई से आया है. छोटे भाई बहन मां सबके लिए अटैची भर कर सामान लाया है. बाऊजी के लिए भी जूता,स्वेटर और धोती भी लाया है.अब वह पहले वाला कमल नहीं रहा. अब बहुत कम बोलता है. पास पड़ोस के बच्चे जुट गए थे. बैग में से कमल ने रेवड़ी का पैकेट और मिठाई का थैला अम्मा को थमा दिया. अम्मा सभी बच्चों को रेवड़ी  और मिठाई बाँटने लगी.छोटे भाई-बहन अपना सामान देखकर खुश हो रहे थे तथा एक दूसरे से अच्छा बता रहे थे.इस बीच घंटी बजने की आवाज सुनाई दी. असल में बैलों के गले में बजी घंटी की आवाज़ थी. बाऊजी खेत की जुताई कर आ गए.हल को दीवार के सहारे खड़ा कर बाऊजी पीछे मुड़े तो कमल को अपने पैरों पर झुके पाए. यह दृश्य देखकर अम्मा बोली- देखे, मैं कहती थी ना, मेरा बेटा 1 दिन अच्छा काम करेगा. अब इसे कोई आवारा नहीं कहेगा. हमारा कमल बिल्कुल बदल गया. बाऊजी की भी आंखें भर आई और कमल को गले लगा लिया. पूरे ढाई साल बाद जो आया था.आंखें देखने को तरस गई थीं.
इति शुभम्
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रविवार, 29 जनवरी 2017

दुखों को बाँटने से ही तुम्हारा दुःख ये कम होगा .

दुखों को बाँटने से ही तुम्हारा दुःख ये कम होगा .
रखोगे बांधकर इसको यही दुःख जख्म कल होगा .

अगर तुम दोस्त हो मेरे तो ये दुःख बाँट दो मुझसे .
तुम्हारे होंठो पे बिखरा हुआ ये दर्द कम होगा .

ज़माना क्या कहता है कहने दो तुम मत उलझना .
राह बढ़ते चलो तुम तो बुलंदी पर घर होगा.

तुम्हे जो कोसते हैं कोसने दो ध्यान मत देना .
सफलता में देखना तुम ये सुर बदला हुआ होगा .

न सोंचो तुम कि क्या होगा बढ़ो आगे–बढ़ो आगे

बहुत होगा तो ये होगा मुकद्दर जो लिखा होगा 

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विवादों के रिश्तेदार भंसाली और अब रानी पद्मावती

इधर दो दिनों से मीडिया में भंसाली छाये हुए हैं वह भी गलत कारणों से वे अक्सर विवादों में रहते हैं मीडिया में जगह पाने के लिए या दुर्भाग्य वश ऐसा हो जाता है या जानबूझकर ऐसे विषय उठाते हैं जिससे विवाद हो, चर्चा मिले और फिल चल निकले . भंसाली की विवादों से कोई रिश्तेदारी है क्या ? 
बिना विवाद के भंसाली 'गुजारिश'फिल्म  बनाए थे  सो उसका हस्र सबको पता है . शायद ये भी एक कारण हो .... शायद न भी हो .
पर मैं देख रहा हूँ। जो भी खबरें आ रही हैं वे भंसाली के पक्ष में आ रही हैं उनके साथ दुर्व्यवहार की सबने निंदा की और होना भी चाहिए।
पर कारण क्या था ? वह कारण महत्वपूर्ण है या नहीं... इस पर सब मौन हैं । अपने सतीत्व या सम्मान की रक्षा के लिए रानी पद्मावती ने अनेकों स्त्रियों के साथ स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया. जिसे जौहर कहा जाता है। उसी रानी पद्मावती को खिलजी के साथ काम क्रीड़ा करते फिल्माया जा रहा है। जब फिल्म बन कर दर्शकों के समक्ष जायेगी तो नई पीढ़ी क्या सीखेगी या जानेगी। क्या ये असली इतिहास है कि अलाउद्दीन खिलजी और पद्मावती में रोमांस था ? क्या मनोरंजन के नाम पर इतिहास या किसी समाज, समूह या व्यक्ति का अपमान करना उचित है ? मुझे कोई भी मित्र या  महानुभाव ये बताएं कि किस प्रामाणिक पुस्तक में खिलजी और रानी पद्मावती के रोमांस का वर्णन है ? पद्मावती से सन्दर्भित ग्रन्थ या पुस्तक का नाम न बताएं । सिर्फ ये बताएं की खिलजी का पद्मावती के साथ प्रेम प्रसंग कहाँ लिखा है ?




भंसाली को ये तथ्य कहाँ से मिला ? भंसाली से भी ये प्रश्न पूछना चाहिए। सिर्फ एक तरफा बात से व्यक्ति की निरपेक्षता पर प्रश्न उठेगा 26 अगस्त, 1303 को रानी पद्मावती ने जौहर किया .मलिक मोहम्मद जायसी ने 1540 में अवधी भाषा में पद्मावत काव्य की रचना की जो अवधी में राम चरित मानस के बाद सबसे अधिक लोकप्रिय है .घटना के 237 वर्ष बाद पद्मावत की रचना जायसी जी ने की . ऐसे में इतने लम्बे अन्तराल के बाद सही तथ्यों  को वे कितना पद्मावत में ला पाए होंगे. आज की तरह तब साधन भी नहीं थे . खैर पद्मावत एक महान काव्यात्मक कृति है इसमें जरा भी संशय नहीं है उससे भी खुसी की बात मेरे लिए है क्योंकि मेरी मातृभाषा है और पद्मावत अवधी में है.पद्मावत में कहीं भी ये जिक्र नहीं है कि खिलजी के साथ पद्मावती ने काम क्रीड़ा की. हाँ ये अवश्य लिखा गया है कि वह पद्मावती का सौन्दय वर्णन सुनकर उन्हें पाने की अभिलाषा करने लगा था . प्रयास भी किया पर रानी ने तमाम क्षत्राणी स्त्रियों के साथ जौहर [आत्मदाह ] कर लिया .  ऐसे में कुछ लोग जो खुद को पवित्र-पवित्र [ कथित धर्मनिरपेक्ष ] चिल्लाते रहते हैं.इसमें हिन्दू चरमपंथ और धर्म को जोड़कर और चटपटा बना रहे हैं .ऐतिहासिक तथ्यों के गलत रूपांतरण या सिनेमा के जरिये पेश करने के मामले को हिन्दू चरमपंथ और हिन्दू धर्म से जोड़ रहे हैं . इस मामले की जाँच होनी चाहिए कि जो भंसाली अपनी कहानी में दिखाना चाहते हैं वह वास्तव में ऐतिहासिक रूप से सत्य है या नहीं .इस पर मौन हैं .बाकी गौण मुद्दे को प्रमुख मुद्दा बना दिए हैं . भंसाली पर जिसने भी हमला किया वह निंदनीय है . ऐसा नहीं होना चाहिए था . कानून को ऐसे लोगों को सजा देनी चाहिए. ऐसे में भंसाली को भी उनकी कहानी पर लोगों के संशय को लेकर  अपना पक्ष रखना चाहिए.आप मारपीट के पक्ष को बढ़ाचढ़ा कर मीडिया में प्रस्तुत कर रहे हो, पर मूल मुद्दे पर मौन हो . बालीबुड के जो लोग भंसाली के पक्ष में विलाप लार रहे हैं उन्हें करनी सेना के आरोपों पर भी भंसाली से खुलेमन से पूछना चाहिए . अन्यथा यह अभिव्यक्ति की आजादी के साथ  बालीवुड द्वारा पक्षपात पूर्ण अनाचार होगा.क्या मनोरंजन  रूपी व्यापार के लिए कला या अभिव्यक्ति के नाम पर इतिहास को तोड़ - मरोड़ कर अपनी सुविधा अनुसार पेश करना  सही है . किसी भी व्यक्ति ,समाज या समूह के सम्मान या गौरव को ठेस पहुँचाना उचित है . यदि नहीं तो संजय लीला भंसाली को भी कटघरे में खड़ा करना होगा  और उनसे जवाब मांगना होगा . अन्यथा ये मानवीय नीचता व पक्षपात होगा .
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बुधवार, 25 जनवरी 2017

कुछ शेर ...मौका परस्ती भी क्या कमाल की चीज है

मौका परस्ती भी क्या कमाल की चीज है 
कल तलक जो था गद्दार आज उसी की पहनी कमीज है

बासी दाल भी जो माँग ले जाते थे कल तलक
वही कहते हैं आप की औकात क्या है   

जिन्हें दुलारा, पढ़ाया,सिखाया अदब 
वही कहते हैं अब हमको गँवारू लोग है साहब 

बड़े मक्कार,धोखेबाज और अय्यार देखे हैं 
मगर नेता के आगे सबको हम लाचार देखें हैं 

ज़माना कुछ कहे या ना कहे क्या फर्क पड़ता है 
पूस की रात में अक्सर कोई गरीब मरता है 

ना वादा करूँगा,न इकरार करूँगा







ना वादा करूँगा,न इकरार करूँगा
तुमसे प्यार करता हूँ बस प्यार करूँगा
कल मिलूँगा या फिर परसों वरना मिलूँगा नरसों
ना कोई वादा,बस मिलाने की कोशिश करूँगा 

तुम्हारे लिए कुछ भी कर जाऊँगा
प्यार में मैं हद से गुजर जाऊँगा 
ऐसी वैसी बात न कोई वादा करूँगा 
प्यार करता हूँ प्यार का फर्ज निभाऊंगा

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मंगलवार, 24 जनवरी 2017

गीत.....रात भर - रात भर तूँ जगाती रही

























 मेरे प्रिय पाठक मित्रों ये गीत मैंने १५ वर्ष पहले मुंबई के ह्रदय नरीमन प्वाइंट के बस स्थानक पर बैठकर आधा लिखा था और आधा चौपाटी पर बैठ कर लिखा  था  और १२ वर्ष पहले फिल्म राइटर्स एसोशिएशन में पंजीकृत कराया था आज अचानक पुराने दस्तावेजों को उलटते -पुलटते मिल गया .  पढ़िए और अपनी टिपण्णी से अवगत कराएं .......

रात भर - रात भर तूँ जगाती रही, रात भर -रात भर मैं सोता रहा .
रात भर - रात भर तूँ जगा ना सकी,रात भर - रात भर मैं सो ना सका 


तूने भी जीतने की थी कोशिश बहुत ,मैंने भी जीतने की थी कोशिश बहुत
जीतते - जीतने हार तूँ भी गई, जीतते - जीतते हार मैं भी गया


तूँ मेरे दिल के पास आती रही, मैं तेरी धडकनों से दूर जाता रहा
दिल के दरवाजे में तूँ भी घुस ना सकी,धडकनें तेरी मुझको समझ ना सकी 


उलझने आपा-धापी लगी यूँ रही, सुबह आती रही, दिन भी जाता रहा
शाम से रात और रात से फिर सुबह,फिर महीनें से सालों गुजरते गए 


पास आकर भी हम दूर होते गए, फिर महीने से सालों गुजरते गए
पास आकर भी हम दूर होते गये,फिर बड़ी कश्मकश से जो दिल भी मिले


दिन गुज़र था चुका शाम होने को थी,हम गले ज्यों मिले शाम रोने लगी
हमारी नादानियों पे रात हँसने लगी,मैं भी रोने लगा, वो भी रोने लगी

प्यार से प्यार को प्यार था बुला रहा,हम ही दुश्मन समझ के अकड़ते रहे
जो हुआ सो हुआ,शुक्र इतना रहा,इस जनम में ही जीते जी हम मिल गये 

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सोमवार, 23 जनवरी 2017

माँ ना जाने उसको अक्सर क्या - क्या कहती है




























माँ ना जाने उसको अक्सर क्या - क्या कहती है

 मेरे कारण ना जाने वो क्या - क्या सहती है 


माँ,भाई ,बहनें सबकी नज़रों में रहती  है

 करती है चुपचाप सभी की फिर भी सुनती है 


दिन भर सब की फरमाइश पर नाचती रहती है

 'बेसऊर है' सास से ताने सुनती रहती है 


जब से आयी है जाने क्या जादू कर दी है

 मेरे बेटे को अपने कब्जे में रखती है 


शादी से पहले तो अम्मा -अम्मा करता था

 लगी है जब से हल्दी बीवी की हाँ में हाँ रहती है 


बहनें हुई विदा सब भाई हाथ छुड़ाए

बुरे वक्त में सब छूटे बस बीवी रहती है 



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शनिवार, 21 जनवरी 2017

मोहब्बत की बहुत बातें जमाने भर से की तूने

मोहब्बत की बहुत बातें जमाने भर से की तूने
मगर तूं ये बता खुद से मोहब्बत की कभी तूने


मशवरे तूं जमाने भर को भर-भर रोज देता है
कभी उन मशवरों को खुद अमल में लाया क्या तूनें


मोहब्बत,मशवरे,मज़ाक से भी इतर है दुनियां
भूख से छटपटाते बच्चे को देखा कभी तूनें


सुना है इश्क पर तूनें कई किताब लिखी है
वतन पर भी कहीं कोई बता मिसरा लिखा तूने 


मजम्मत की है अच्छे -अच्छों की तूने सुना मैंने
बता खुद से कभी खुद की मजम्मत की कभी तूनें


दिखाना दूसरों को आइना मुश्किल नहीं है
आइनें में कभी खुद को निहारा है बता तूनें


किसी को दर्द देना है नहीं मुश्किल जमाने में
बता तूं खुद के जख्मों पर नमक रखा कभी तूनें


बात कुर्बानी की कर लेना है आसान बड़ा
खुद के बेटे के गले पर कभी कटार रखी है तूनें 

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कुछ मित्रता पर ताज़ा शेर



दोस्तों की जो देखी कारगुजारियाँ तो 
दुश्मन बुरे नहीं हैं ये ख्याल आया 

आजकल दोस्त कुछ इस अदा से मिलते हैं 
कि दुश्मनों से दोस्ती को जी चाहता है 

साथ इक दोस्त ही तो था न जिससे खून का रिश्ता 
वो रिश्तेदार ही तो थे जो मुझको घेर कर मारे 

नाते-रिश्तेदार जहाँ सब छूट जाते हैं 
वहीं से दोस्त आकर खाली दामन थाम जाते हैं 

खून के रिश्ते से जो बातें बयाँ करने से डरते 
वही बातें दोस्तों संग हम हँस-हँस कर करते हैं 

खून के रिश्ते  तो आसमानी हैं मगर 
फक्र है दोस्ती का रिश्ता हम खुद ही बनाते हैं 

शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

इक प्यार में ही ऐसा करम होता है


                                                गीत


इक प्यार में ही ऐसा करम होता है
एक को घाव लगती है,दर्द दूजे को होता है 


किसी का भार ढोने में बड़ा ही गर्व होता है
किसी का साथ देने में बड़ा आनन्द होता है 


इक दूजे की खातिर पंगा लेने का जज्बा
इक दूसरे के वास्ते कुर्बानी का जज़्बा


जनमों-जनम साथ जीने मरने का वादा
दुश्मन जमाने से भी मजबूत इरादा 


इक दूजे की खातिर छूटे दो-दो घर परिवार
महल अटारी छोड़ के भटके बस्ती जंगल यार 


रुखा-सूखा खाकर भी करें गुजारा यार
गली-गली की ख़ाक छाने दर-दर भटके यार 


फिर भी हार मानें यारों ऐसा होता प्यार ........ 

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कुछ मुक्तक

इस धरती में पैदा हुआ मैं इसका लाल हूँ.
जैसा भी हूँ मैं माँ तेरा बेटा कमाल हूँ 
तुझे आँख उठा के जो कोई देखेगा माँ
उसके लिए तो काल क्या मैं महाकाल हूँ.


माना कि आवारा हूँ रंगबाज़ बड़ा हूँ 
थोड़ा सा हूँ नटखट मगर दिलदार बड़ा हूँ 
सपने में भी चाहेगा कोई माँ का गर बुरा 
फिर उसकी ज़िंदगी में मैं जंजाल बड़ा हूँ 


दुश्मनों को हिन्द से मैं यही पैगाम देता हूँ
शांति से गर रहोगे तो प्यार का जाम देता हूँ 
अगर नज़रें तरेरोगे बेवज़ह हिन्द पर मेरे
फिर अंधेपन का ऐसी नज़रों को इनाम देता हूँ   


बेवज़ह हम नहीं पहले किसी को छेड़ते हैं
जो हमको छेड़े कोई फिर उसे नहीं छोड़ते हैं
शुरू पहले लड़ाई हम कभी करते नहीं 
शुरू हो जाती है तो ख़त्म करके छोड़ते हैं 


स्वदेश की उन्नति के लिए काम करूंगा 
गरिमा रहे बढ़ती जतन तमाम करूँगा 
हो देश की जब बात तो कुछ सोंचना नहीं 
इसके लिए तो शीश भी बलिदान करूंगा 


मर्यादा में रहकर जो तुम काम करोगे 
वाणी संयम,तुम सबका सम्मान करोगे 
मर्यादा के कारण रघुपति पुरुषोत्तम कहलाये 
काम सफल होगा जगत में नाम करोगे 

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चाहत




















गीत 


तुमने चाहा मुझे ये बड़ी बात है
खूबियाँ मुझमें देखी बड़ी बात है
सबने मुझमें तो बस दोष ही देखा है
धन्य हो मुझमें जो खूबी ही देखा है


चाहने वाला होता सदा ही बड़ा
खामियाँ छाँटकर खूबियाँ देखता
ऐसी नज़रों के वंदन को जी चाहता
इसलिए प्रेम प्रभु का स्वरुप होता है



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गुरुवार, 19 जनवरी 2017

मैं नहीं बदला,बहुत कुछ बदल गया साहब

गज़ल


  


  शहर में आकर बरसों गुज़र गया साहब
  मैं नहीं बदला,बहुत कुछ बदल गया साहब 


गाँव से शहर आया हुआ गँवार आदमी हूँ मगर
शहर की ऐय्यारियाँ मुझ पर न चल सकी साहब


रंग कोई न चढ़ सका मुझ पर
पक्के पानी का आदमी हूँ साहब 


हूँ मैं माटी का, किसान का बेटा
ठेठ देहाती हूँ मैं कैसे बदलूँगा साहब 


जमीं पर, बोरे पर, पीढ़े पर बैठ कर खाया
बैठकर कुर्सी पर खाना नहीं आया साहब 


लोग कहते हैं ये देसी है नहीं बदला
कैसे बदलूं यही पहचान मेरी है साहब 


जब भी लिखता हूँ, गाँव लिखता हूँ
क्या करूँ दिल से निकलता नहीं साहब


आख़िरी सच यही है ठेठ हूँ देशी हूँ मैं
शहर में हूँ मगर, शहर का मैं नहीं साहब 


गुजर चुकी है बहुत ,ये भी गुज़र जायेगी
शहर के चोले में शातिर नहीं बनना साहब  


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मंगलवार, 10 जनवरी 2017

10 जनवरी विश्व हिन्दी दिवस पर विशेष लेख

10 जनवरी विश्व हिन्दी दिवस पर विशेष लेख

विश्व में हिन्दी का स्थान 

हिन्दी प्रेमी प्रति वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाते हैं। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था.इसीलिए इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस  के रूप में मनाया जाता है सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं। विश्वभर में हिन्दी का विकास करने और इसे प्रचारित - प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनो की शुरुआत की गई और ।भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह  ने 10 जनवरी 2006 को प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की घोषणा की थी। उसके बाद से भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिन्दी दिवस मनाया था। तब से प्रति वर्ष पुरी दुनिया में 10 जनवरी को हिन्दी प्रेमी पूरे उत्साह से हिन्दी दिवस मनाते हैं और हिन्दी पर अनेक अनेक कार्यक्रम रखते हैं. तो आइये आज विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर जाने कि हमारी हिन्दी दुनियाभर में अपना डंका कैसे बजा रही है
हिन्दी आज भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के विराट फलक पर अपने अस्तित्व को आकार दे रही है। आज हिन्दी विश्व भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त करने की ओर अग्रसर है। अब तक भारत में 3 और भारत के बाहर सात विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित हो चुके हैं। पिछले दस सम्मेलन क्रमश: नागपुर [1975], मॉरीशस [1976],नई दिल्ली 1983,मॉरीशस [1993],त्रिनिडाड एंड टोबेगो [1996], लंदन [1999], सूरीनाम [2003]  संयुक्त राज्य अमेरिका [2007]  दक्षिण अफ्रीका [2012] भोपाल [2015] में सम्पन्न हुए. अगला हिन्दी विश्व सम्मेलन वर्ष 2018 में मारीशस में होगा.
वर्तमान में आर्थिक उदारीकरण के युग में बहुराष्ट्रीय देशों की कंपनियों ने अपने देशों अमरीका,ब्रिटेनफ्रांसजर्मनीचीन आदि
के शासकों पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है ताकि वहां हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार तेजी से बढ़े और हिन्दी जानने वाले एशियाई देशों में वे अपना व्यापार उनकी भाषा में सुगमता से कर सकें। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी की प्रगति यदि इसी प्रकार होती रही तो वह दिन दूर नहीं जब हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ में एक अधिकारिक भाषा का रूप हासिल कर लेगी.
वर्तमान में मातृभाषियों की संख्या के दृष्टिकोण से विश्व की भाषाओं में मंदारिन [चीनी भाषा] के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा के बोलने वालों से अधिक है. परन्तु मंदारिन भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की तुलना में सीमित है और अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र, हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु हिन्दी के मातृभाषियों की संख्या अंग्रेज़ी भाषियों से अधिक है।
अंग्रेजी के मूल क्षेत्र माने जाने वाले देशों की वर्तमान जनसँख्या देखें तो अमरीका की जनसंख्या 31 करोड़,ग्रेट-ब्रिटेन की जनसंख्या 6.50 करोड़कनाडा की जनसंख्या 3.6 करोड़आस्ट्रेलिया की जनसंख्या सवा दो करोड़,आयरलैंड की जनसंख्या 65 लाख और न्यूजीलैंड की जनसंख्या 50 लाख. इनकी कुल जनसंख्या वर्तमान में 44.25 करोड़ के आस-पास है।जबकि इसी वर्ष भारत की जनसंख्या 131 करोड़ से अधिक है।भारत के लगभाग 70 प्रतिशत लोग राजकाज,जनसंचार,शिक्षा,व्यापार या घर के बाहर संपर्क के लिए हिन्दी का उपयोग करते हैं।इस आधार पर हिन्दी का व्यवहार करने वालों की संख्या 90 करोड़ हो जाती है।जो विश्व भर में अंग्रेजी के गढ़ वाले देशों की देशों की कुल जनसंख्या के लगभग दो गुना से भी अधिक है। यदि भारत में आधे लोगों को भी हिन्दी व्यवहार करने वालों में गिना जाए,तब भी अंग्रेजी की तुलना में हिन्दी का ही पलड़ा भारी पड़ता है और हिन्दी विश्व की दूसरी प्रमुख भाषा बन जाती है,किन्तु अगर इसमें मारीशस, फिजी , सूरीनाम, गुयाना, पड़ोसी नेपाल,पाकिस्तान,बांग्लादेश विश्व के अन्य देशों में बसे हिन्दी बोलने तथा जानने वाले भारतवंशियों की संख्या भी  जोड़ दें तो, हिन्दी मंदारिन को पछाड़कर विश्व की सबसे बड़ी भाषा है.
आज वैश्विक स्तर पर यह सिद्ध हो चुका है कि हिन्दी भाषा अपनी लिपि और ध्वन्यात्मकता उच्चारण के लिहाज से सबसे शुद्ध और विज्ञान सम्मत भाषा है। हमारे यहां एक अक्षर से एक ही ध्वनि निकलती है और एक बिंदु अनुस्वार का भी अपना महत्व है। दूसरी भाषाओं में यह वैज्ञानिकता नहीं पाई जाती। 
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ग्राह्य भाषा अंग्रेज़ी को ही देखेंवहां एक ही ध्वनि के लिए कितनी तरह के अक्षर उपयोग में लाए जाते हैं जैसे ई की ध्वनि के लिए ee(see) i (sin) ea (tea) ey (key) eo (people) इतने अक्षर हैं कि एक बच्चे के लिए उन्हें याद रखना मुश्किल हैंइसी तरह क के उच्चारण के लिए तो कभी c (cat) तो कभी k (king) ch का उच्चारण किसी शब्द में क होता है तो किसी में च। ऐसे सैंकड़ों उदाहरण हैं. आश्चर्य की बात है कि ऐसी अनियमित और अव्यवस्थित,मुश्किल अंग्रेजी हमारे बच्चे चार साल की उम्र में सीख जाते हैं बल्कि अब तो विदेशों में भी हिंदुस्तानी बच्चों ने स्पेलिंग्स में विश्व स्तर पर रिकॉर्ड कायम किए हैंजब कि इंग्लैंड में स्कूली शिक्षिकाएं भी अंग्रेज़ी की सही स्पेलिंग्स लिख नहीं पाती। 
हमारे यहाँ अंग्रेजी भाषा के धुरंधर बच्चे कॉलेज में पहुंचकर भी हिन्दी में मात्राओं और हिज्जों की गलतियां करते हैं और उन्हें सही हिन्दी नहीं आती. जबकि हिन्दी सीखना दूसरी अन्य भाषाओं के मुकाबले कहीं ज्यादा आसान है। ऐसे में हिन्दी की उपेक्षा और उसके राष्ट्रभाषा न बन पाने के कारणों का त्वरित और गम्भीरता पूर्वक अध्ययन कर समाप्त कर हिन्दी को हिन्दुस्तान के मस्तक पर सजाना होगा . 
वेब, विज्ञापन, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिंदी की मांग जिस तेजी से बढ़ी है. वैसी किसी और भाषा में नहीं। विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैकड़ों छोटे-बड़े केंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है। विदेशों में 35 से अधिक पत्र-पत्रिकाएं लगभग नियमित रूप से हिंदी में प्रकाशित हो रही हैं। यूएई में 'हम एफ-एम' हिन्दी रेडियो  प्रसारण सेवा है. इसी प्रकार बीबीसी, जर्मनी के डायचे वेले,जापान के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिंदी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय है.विदेशों में चालीस से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और स्कूलों में हिन्दी पढाई जा रही हैं ।
दो हिन्दी अंतर्जाल पत्रिकाएं जो विश्व में प्रतिमाह 6,000 से अधिक लोगों द्वारा 120 देशों में पढी ज़ाती हैं। अभिव्यक्ति व अनुभूति www.abhivykti-hindi.org तथा www.anubhuti-hindi.org के पते पर विश्वजाल (इंटरनेट) पर मुफ्त उपलब्ध हैं।ब्रिटेनवासियों ने हिन्दी के प्रति बहुत पहले से रुचि लेनी आरंभ कर दी थी। गिलक्राइस्टफोवर्स-प्लेट्समोनियर विलियम्सकेलाग होर्लीशोलबर्ग ग्राहमवेली तथा ग्रियर्सन जैसे विद्वानों ने हिन्दीकोष व्याकरण और भाषिक विवेचन के ग्रंथ लिखे हैं। लंदनकैंब्रिज तथा यार्क विश्वविद्यालयों में हिन्दी पठन-पाठन की व्यवस्था है। यहां से प्रवासिनीअमरदीप तथा भारत भवन जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन होता है। बीबीसी से हिन्दी कार्यक्रम प्रसारित होते हैं।फिज़ी में रेडियो नवरंग’ एकमात्र ऐसा रेडियो स्टेशन हैजो 24 घण्टों तक हिंदी कार्यक्रम पेश कर रहा है। फिज़ी सरकार सूचना मंत्रालय के माध्यम सेनव ज्योंतिनामक त्रैमासिक पत्रिका भी निकालती है
आइये देखते हैं विश्व में हिन्दी के पठन-पाठन से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी :
 विश्व के मानचित्र में फ्रांस का एक विशेष स्थान है.
 फ्रांस: फ्रांस के पेरिस शहर में सौरबेन विश्वविद्यालय में वर्ष के पाठ्यक्रम के अलावा पीएचडी के लिए शोध की भी व्यवस्था है. ‘’पेरिस के प्राच्य भाषाओं एवं सभ्यताओं के राष्ट्रीय संस्थान’’ में हिंदी में वर्ष का सर्टिफिकेट कोर्ससाल का डिप्लोमासाल में उच्च डिप्लोमासाल और साल के उच्च अध्ययन के शिक्षण की भी व्यवस्था है.
जापान: जापान के टोक्यो और ओसाका विश्व विद्यालयों में हिंदी का छह वर्षीय कोर्स है. इसके अलावा अन्य विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों में हिंदी वैकल्पिक विषय के रूप में द्वितीय एवं तृतीय भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है. सन 1992 के करीब जापान का एक हिंदी स्कॉलर काफी समय तक भारत में रहने के उपरांत शिकागो गया और वहां पर हिंदी का एक बृहत् पुस्तकालय देखकर उस जापानी विद्वान ने भारत में अपने एक मित्र प्रोफ़ेसर को पत्र लिखा था कि यहां के हिंदी पुस्तकालय को देखकर दिल्ली विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को शर्मिंदा होना पड़ेगा. तो ऐसी है हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी.
कनाडा: कनाडा की यूनिवर्सिटी आफ ब्रिटिश कोलंबिया में हिंदी का वर्ष का पाठ्यक्रम है. मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय में प्रारंभिक स्तर पर और अटावा शहर में बने मुकुल हिंदी हाई स्कूल में 1971 से सभी कक्षाओं में और टोरंटो शहर के कुछ स्कूलों में भी हिंदी पढ़ाई जाती है.
संयुक्त राज्य अमेरिका: संयुक्त राज्य अमेरिका के 30 विश्वविद्यालयों में उच्च, इंटरमीडिएट एवं प्रारंभिक स्तर पर एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है. संयुक्त राज्य अमेरिका में येन विश्वविद्यालय में 1815 से ही हिन्दी की व्यवस्था है। 1875 में कैलाग ने हिन्दी भाषा का व्याकरण तैयार किया था। अमरीका से हिन्दी जगत प्रकाशित होती है ।
कैलिफोर्निया, कोलंबिया, विस्कॉन्सिन, पेनसिलवेनिया, वर्जीनिया, टेक्सास, वाशिंगटन और शिकागो आदि विश्व विद्यालयों में हिंदी का भाषा केंद्रित अध्यन होता है.
नार्वे: नार्वे के ओसलो विश्वविद्यालय में मास्टर डिग्री के लिए हिंदी का पठन-पाठन किया जाता है तथा कुछ अन्य शहरों में भी प्राथमिक स्तर के स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाती है. स्वीडन  के स्काटहोम विश्वविद्यालय में हिंदी का आधारभूत पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है. उप्पसला विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाई जाती है.
 दक्षिण अफ्रीका: दक्षिण अफ्रीका के यूनिवर्सिटी आफ डरबन में [डरबन शहर] में स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री के लिए हिन्दी पठान की व्यवस्था है. 50 विद्यालयों में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा की परीक्षाओं के लिए हिंदी पढ़ाई जाती है।
चीन: चीन के बीजिंग विश्वविद्यालय में ‘’पूर्वी भाषाएं और साहित्य विभाग’’ में स्नातक डिग्री के लिए हिंदी की पढ़ाई होती है   
ब्रिटेन: ब्रिटेन के लंदन विश्वविद्यालय एवम कैंब्रिज विश्वविद्यालय में बीए एम्एके स्तर पर ‘’भाषा विज्ञान’’ विषय के रुप में हिंदी के अध्यापन की व्यवस्था है.
 जर्मनी: जर्मनी के हुम्बोल्ट विश्वविद्यालय, बर्लिन स्थित फ्री विश्वविद्यालय, बर्लिन स्थित ही लीपजिंग विश्वविद्यालय, मार्टिनलूथर विश्वविद्यालय, बान विश्वविद्यालय, हाईडेलबर्ग विश्वविद्यालय, और हैम्बर्ग विश्वविद्यालय में नियमित रुप से हिंदी पढ़ाई जाती है. यहां के अन्य कई विश्वविद्यालयों में भी हिंदी पढ़ाई जाती है.
रूस : रूस में मास्को स्थित ‘’प्राच्य अध्ययन संस्थान’’ और पेतेरबर्ग स्थित ‘’: प्राच्य भाषा संस्थान’’ में 1920 से हिंदी पढ़ाई जा रही है. व्लादिवोस्तोक स्टेट यूनिवर्सिटी में भी हिंदी पढ़ाई जाती है.
 स्विट्ज़रलैंड : स्विट्ज़रलैंड में लवसाने और ज्यूरिख के विश्वविद्यालयों में हिंदी के प्रारंभिक पाठ्यक्रम पढ़ाये जाते हैं.
 इटली : इटली के नेपल्स और वेनिस विश्वविद्यालयों में इन्डोलाजी एंड फॉरईस्ट विभागों में हिंदी के उच्च स्तरीय पठन की व्यवस्था है. मिलान इंस्टिट्यूट फॉर मिडिल ईस्टमिलानविश्वविद्यालय और ट्यूरिन विश्वविद्यालय के ‘’आधुनिक आर्य परिवार की भाषाओं का विभाग’’ में हिंदी की शिक्षा दी जाती है.
हालैंड : हालैंड के लायडन विश्वविद्यालय में हिंदी का वर्षीय शिक्षण पाठ्यक्रम है. इसके अलावा निजी संगठन भी हिंदी सिखाते हैं.
 ऑस्ट्रेलिया : ऑस्ट्रेलिया के कैनबरा स्थित विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर पर ऐच्छिक विषय के रूप में हिंदी का अध्ययन होता है. लात्रोवे, मोनाश तथा क्वींसलैंड के विद्यापीठों में भी हिंदी पढ़ाई जाती है, अन्य देशो जैसे डेनमार्क, पोलैंड, चेक गणराज्य,हंगरी, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको, क्यूबा, बेल्जियम, ऑस्ट्रिया, फिनलैंड, रोमानिया, क्रोशिया गणराज्य, मंगोलिया, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, तुर्की, थाईलैंड, रीयूनियम, अर्जेंटीना, सऊदी अरेबिया, ओमान, बहरीन, मलेशिया, ताइवान, सिंगापुर, केन्या, कुवैत, इराक, ईरान, तंजानिया, जांबिया, बहरीन, बोत्सवाना और इंडोनेशिया के स्कूलों में हिंदी का अध्यापन होता है.
 हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान के कराची लाहौर विश्वविद्यालय तथा इस्लामाबाद की स्कूल ऑफ मॉडर्न लैंग्वेजेस में सर्टिफिकेट और डिप्लोमा स्तर पर हिंदी पढ़ाई जाती है. श्रीलंका में डिग्री कोर्स तक हिंदी पढ़ाई जाती है. हमारे पड़ोसी नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर और पीएचडी तक की हिंदी सुविधा है. बांग्लादेश में हिंदी का वर्षीय कोर्स है .भूटान के 8स्कूलों तथा बर्मा के मंदिरों, धर्मशालाओं व गैर सरकारी स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाती है. तो यह है हमारे पड़ोसी देशों में हिंदी की स्थिति. कुछ ऐसे भी देश है, जहां बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं और वहां भाषा के साथ साथ भारतीय संस्कृत को भी आगे बढ़ा रहे हैं. वहाँ हिंदी में पत्र पत्रिकाएं भी निकलती हैं. जैसे मारीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो.
मारीशस : मारीशस के लगभग 35गैर सरकारी स्कूलों में सांध्यकालीन पढ़ाई होती है. माध्यमिक पढ़ाई के करीब 30 सरकारी और 100 गैर सरकारी विद्यालयों में 25000 विद्यार्थी प्रतिवर्ष हिंदी पढ़ते हैं. यह आंकड़ा बढ़ गया है. महात्मा गांधी संस्थान में डिप्लोमा कोर्स, अध्यापकों के लिए पीजी डिप्लोमा कोर्स वर्ष का, हिंदी में बीए ऑनर्स कोर्स, फिजी में पहली व दूसरी कक्षा में हिंदी शिक्षा का माध्यम है तीसरी कक्षा से हिंदी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है. विश्वविद्यालयों में भी हिंदी पढ़ाई जाती है. सूरीनाम में सबसे ज्यादा विश्व विद्यालयों में हिंदी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है. सन 1977 से हिंदी परिषद द्वारा आयोजित पाठ्यक्रमों में तकरीबन एक हजार से ज्यादा छात्र हिंदी की परीक्षाएं देते हैं. भारतीय संस्कृति के केंद्र में भी हिंदी पढ़ाई जाती है त्रिनिदाद एवं टोबैगो यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टइंडीज और नीहस्ट में दो प्रोफेसर हिंदी पढ़ाते हैं. वेस्टइंडीज विश्वविद्यालय में हिंदी पीठ की स्थापना की गई है. यहां के अनेक विद्यालयों में हिंदी का पठन - पाठन होता है तथा हिंदी के अध्यापकों को प्रशिक्षित किया जाता है. गुयाना में ‘’हिंदी प्रचार’’ सभा द्वारा यहां के मंदिरों में लगभग सब पाठशालाएं हिंदी की प्राथमिक और माध्यमिक परीक्षा की व्यवस्था करती हैं. कुछ माध्यमिक स्कूलों में6:00 से 8:00 तक हिंदी पढ़ाने का बंदोबस्त है गुयाना विश्वविद्यालय में बैचलर ऑफ आर्ट के स्तर पर हिंदी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है ‘’भारतीय सांस्कृतिक केंद्र’’ ने जार्जटाउन में हिंदी पढ़ाने के लिए एक अध्यापक नियुक्त किया है. 1907 में भारत से मॉरीशस गए डॉक्टर मणिलाल वर्ष बाद 15 मार्च 1909 में ‘’हिंदुस्तान’’ नाम से एक पत्रिका प्रकाशित की. शुरु -शुरू में यह पत्रिका अंग्रेजी और गुजराती में निकलती थी, परंतु बाद में गुजराती की जगह हिंदी हो गई. 1910 में डॉ. मणिलाल ने वहां आर्य समाज की स्थापना की और अपना प्रेस आर्य समाज को सौंप दिया. बाद में आर्य समाज ने ‘’आर्य’’ नाम की  साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया और एक स्कूल खोला और वहां हिंदी की पढ़ाई की व्यवस्था भी की. सन 1912 में ‘’ओरियन्टल गजट’’ के नाम से हिंदी और अंग्रेजी भाषा में एक मासिक पत्र निकलना शुरू हुआ.
  1912 में  महाराष्ट्र से आये तथा  हिंदी के अच्छे  लेखक आत्मा राम ने  ‘’हिंदुस्तानी पत्रिका’’ के संपादन का कार्य भार सम्भाला.1913 . में डॉ . चिरंजीवी भारद्वाज  व उनकी पत्नी मारीशस आये और ‘’आर्य परोपकारिणी सभा’’ पंजीकृत कराई.इन्होने आर्य समाज के साथ हिन्दी की भी खूब सेवा की .आर्य समाज के प्रचारक स्वामी स्वतंत्रानन्द [1914] मारीशस आये और कई जगह प्रवचन किये .कई जगह पाठशालायें खुलीं .जिससे हिन्दी का खूब प्रचार हुआ .1918 इसवी में धनपत लाला आर्य वैदिक विद्यालय की स्थापना किये और इसके लिए सरकार से अनुदान भी प्राप्त किये .इस तरह बीसवीं सताब्दी के दुसरे दशक तक जगह जगह पर स्थापित हिन्दी स्कूलों को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हो गयी और 1920 तक हिन्दी विद्यालयों की संख्या 75 तक जा पहुँची .
  1925 में राजकुमार गजाधर ने ‘’मारीशस मित्र’’ नाम से अखबार निकालाऔर इसी वर्ष हिन्दू महासभा की स्थापना भी हुई .1926में हिन्दी प्रचारिणी सभा ने तिलक विद्यालय की स्थापना की .1935 में हिन्दी प्रचारिणी सभा पंजीकृत भी हो गई .1936 में यहाँ पर [मारीशस ] ‘’इन्डियन कल्चरल एशोसियेशन’’ की स्थापना की गई . इस संस्था ने ‘’ इन्डियन कल्चरल रिव्यू ‘’ नाम से एक अखबार का प्रकाशन शुरू किया . इस अखबार के सम्पादक का कार्यभार संभाला डॉ . हजारी सिंह ने तथा इसके अध्यक्ष थे डॉ. शिवसागर रामगुलाम.इन्होंने हिन्दी के लिए मारीशस में अद्वितीय काम किया.1947 में भारत आज़ाद होने के बाद मारीशस में हिन्दी के प्रति लोगों में और उत्साह बढ़ा.
डॉ. शिव सागर रामगुलाम के कहने पर मारीशस में हिन्दी तथा भारतीय संस्कृति के प्रचार के लिए  भारत सरकार ने भारत से राम प्रकाश जी को  मारीशस भेजा .राम प्रकाश जी ने हिन्दी के विकास के लिए हिन्दी अध्यापकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की तथा उच्च स्तर की पठन योग्य पुस्तकें भी तैयार करवाई.1954 में विद्यालयों में अंशकालिक की जगह पूर्णकालिक हिन्दी अध्यापकों की नियुक्ति हुई.1961 में यहाँ हिन्दी लेखक संघ की स्थापना हुई.संघ ने अनेक किताबें प्रकाशित करवाई.1963 में ‘’हिन्दी परिषद्’’ की नींव पडी. परिषद् ने संघ को प्रोत्साहन दिया.परिषद् ने ‘’अनुराग पत्रिका’’[ त्रैमासिक ] का सम्पादन शुरू किया.1960-70 के बीच में हिन्दी में सृजनकार्य संतोषजनक रहा.1965 में टेलीविजन पर हिन्दी प्रोग्राम का प्रसारण भी शुरू हो गया. 1970 में 3 जून को हमारे देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मारीशस में भारत मारीशस मित्रता के रूप में महात्मा गांधी इंस्टिट्यूट का शिलान्यास की.इस संस्थान के संचालक मंडल के प्रधान डॉ शिवसागर राम गुलाम थे . इस संस्थान की स्थापना के बाद सरकारी कॉलेजों में हिंदी व उर्दू की पढ़ाई की व्यवस्था हो गई. इस संस्थान ने भारतीय भाषाओं एवं संस्कृति के प्रचार-प्रसार में प्रशंसनीय कार्य किया. 1920 में इंडियन मारीशस टाइम्स का प्रकाशन प्रारंभ हुआ था. इस अखबार में एक लेख छपा ‘’दो बंगाली चिड़ियों का वार्तालाप’’ कुछ आलोचक इसी लेख को वहां की हिंदी कहानी की शुरुआत बताते हैं. 15 दिसंबर 1935 को वहां सनातनधर्मार्क अखबार का प्रकाशन शुरू हुआ और इस अखबार में ‘’इन्दो’’ शीर्षक से कहानी छपी थी.  [प्रथम किस्त] बाद में इसी समाचार पत्र ने अविनाश’, नागिनऔर वह चला गयाआदि शीर्षक से कहानियां प्रकाशित की. 1976 मेंहिंदी विश्व सम्मेलनमारीशस में ही आयोजित किया गया था. भारतीय भाषा संस्कृति के रुप से मारिशस हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण देश है. और उससे हमारे देश के संबंध बहुत ही दोस्ताना हैं. हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है अगर हिंदी के विकास में कोई बाधा है, तो स्वयं हम भारतीय. जो अंग्रेजी का मोह नहीं छोड़ पाते. हम स्वयं हिंदी की उपेक्षा करते हैं. हमारे घर में हमारी ही मां उपेक्षित है और दूसरे की मां अंग्रेजी को हम माँ- माँ कहकर चिल्लाते हैं. जो हमें मौसी जैसा भी भाव नहीं देती. किसी विद्वान ने कहा था कि  अगर किसी को गुलाम बनाना है तो पहले उसकी भाषा व संस्कृति को नष्ट कर दोवह खुद गुलाम हो जाएगा. वही अंग्रेजों ने किया. हमारी भाषा संस्कृत को विकृत कर दिया. वह जाते-जाते अपना कर चुके थे. अंग्रेजी अपना पैर पसार चुकी थी और आज अंग्रेजी की क्या स्थिति है सब जानते हैं. सबसे ज्यादा अप्रवासी भारतीयों का हिंदी के विकास में योगदान है. हमारे देश में मध्यवर्गीय परिवारों के लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाते हैं हिंदी माध्यम से पढ़ाने में खुद को हीन महसूस करते हैं. इसमें भारत सरकार की कमजोरी है. हर सरकारी कार्यालयों में ज्यादातर कार्य अंग्रेजी में ही किए जाते हैं. जहां भी नौकरी के लिए जाइये पहला सवाल यही होता है ! अंग्रेजी आती है कि नहीं. अगर नहीं, तो समझो नौकरी नहीं मिलेगी. इसलिए हिंदी वालों के मन में हीन भावना घर कर गई. आज हर गरीब - अमीर आदमी अपने बच्चे को कान्वेंट स्कूल में भेजना चाहता है. यही कारण है कि आजादी के 70 सालों बाद भी हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई. इस मामले में हमें चीन से सबक लेने की जरूरत है जो अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति कटिबद्ध है. अंग्रेजो ने जैसे अंग्रेजी को अंतराष्ट्रीय भाषा बनाई. उसी तरह अगर हम हिंदी का प्रयोग खुलकर हर जगह करें ,पढ़े- पढ़ाएं, हिंदी के प्रति समर्पण, प्रेरणा लें और दें. फिर वह दिन दूर नहीं, जब दुनिया वाले हिंदी के पीछे भागेंगे और हिंदी एक स्थापित अंतर्राष्ट्रीय भाषा होगी. जरूरत है तो अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति दृढ़निश्चयी होना, प्रेम होना,हिन्दी को लेकर निराश नहीं होना, उत्साही होना होगा.
जय हिन्दी       
पवन तिवारी    
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