गुरुवार, 19 जनवरी 2017

मैं नहीं बदला,बहुत कुछ बदल गया साहब

गज़ल


  


  शहर में आकर बरसों गुज़र गया साहब
  मैं नहीं बदला,बहुत कुछ बदल गया साहब 


गाँव से शहर आया हुआ गँवार आदमी हूँ मगर
शहर की ऐय्यारियाँ मुझ पर न चल सकी साहब


रंग कोई न चढ़ सका मुझ पर
पक्के पानी का आदमी हूँ साहब 


हूँ मैं माटी का, किसान का बेटा
ठेठ देहाती हूँ मैं कैसे बदलूँगा साहब 


जमीं पर, बोरे पर, पीढ़े पर बैठ कर खाया
बैठकर कुर्सी पर खाना नहीं आया साहब 


लोग कहते हैं ये देसी है नहीं बदला
कैसे बदलूं यही पहचान मेरी है साहब 


जब भी लिखता हूँ, गाँव लिखता हूँ
क्या करूँ दिल से निकलता नहीं साहब


आख़िरी सच यही है ठेठ हूँ देशी हूँ मैं
शहर में हूँ मगर, शहर का मैं नहीं साहब 


गुजर चुकी है बहुत ,ये भी गुज़र जायेगी
शहर के चोले में शातिर नहीं बनना साहब  


poetpawan50@gmail.com

सम्पर्क -7718080978 


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