रविवार, 29 जनवरी 2017

विवादों के रिश्तेदार भंसाली और अब रानी पद्मावती

इधर दो दिनों से मीडिया में भंसाली छाये हुए हैं वह भी गलत कारणों से वे अक्सर विवादों में रहते हैं मीडिया में जगह पाने के लिए या दुर्भाग्य वश ऐसा हो जाता है या जानबूझकर ऐसे विषय उठाते हैं जिससे विवाद हो, चर्चा मिले और फिल चल निकले . भंसाली की विवादों से कोई रिश्तेदारी है क्या ? 
बिना विवाद के भंसाली 'गुजारिश'फिल्म  बनाए थे  सो उसका हस्र सबको पता है . शायद ये भी एक कारण हो .... शायद न भी हो .
पर मैं देख रहा हूँ। जो भी खबरें आ रही हैं वे भंसाली के पक्ष में आ रही हैं उनके साथ दुर्व्यवहार की सबने निंदा की और होना भी चाहिए।
पर कारण क्या था ? वह कारण महत्वपूर्ण है या नहीं... इस पर सब मौन हैं । अपने सतीत्व या सम्मान की रक्षा के लिए रानी पद्मावती ने अनेकों स्त्रियों के साथ स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया. जिसे जौहर कहा जाता है। उसी रानी पद्मावती को खिलजी के साथ काम क्रीड़ा करते फिल्माया जा रहा है। जब फिल्म बन कर दर्शकों के समक्ष जायेगी तो नई पीढ़ी क्या सीखेगी या जानेगी। क्या ये असली इतिहास है कि अलाउद्दीन खिलजी और पद्मावती में रोमांस था ? क्या मनोरंजन के नाम पर इतिहास या किसी समाज, समूह या व्यक्ति का अपमान करना उचित है ? मुझे कोई भी मित्र या  महानुभाव ये बताएं कि किस प्रामाणिक पुस्तक में खिलजी और रानी पद्मावती के रोमांस का वर्णन है ? पद्मावती से सन्दर्भित ग्रन्थ या पुस्तक का नाम न बताएं । सिर्फ ये बताएं की खिलजी का पद्मावती के साथ प्रेम प्रसंग कहाँ लिखा है ?




भंसाली को ये तथ्य कहाँ से मिला ? भंसाली से भी ये प्रश्न पूछना चाहिए। सिर्फ एक तरफा बात से व्यक्ति की निरपेक्षता पर प्रश्न उठेगा 26 अगस्त, 1303 को रानी पद्मावती ने जौहर किया .मलिक मोहम्मद जायसी ने 1540 में अवधी भाषा में पद्मावत काव्य की रचना की जो अवधी में राम चरित मानस के बाद सबसे अधिक लोकप्रिय है .घटना के 237 वर्ष बाद पद्मावत की रचना जायसी जी ने की . ऐसे में इतने लम्बे अन्तराल के बाद सही तथ्यों  को वे कितना पद्मावत में ला पाए होंगे. आज की तरह तब साधन भी नहीं थे . खैर पद्मावत एक महान काव्यात्मक कृति है इसमें जरा भी संशय नहीं है उससे भी खुसी की बात मेरे लिए है क्योंकि मेरी मातृभाषा है और पद्मावत अवधी में है.पद्मावत में कहीं भी ये जिक्र नहीं है कि खिलजी के साथ पद्मावती ने काम क्रीड़ा की. हाँ ये अवश्य लिखा गया है कि वह पद्मावती का सौन्दय वर्णन सुनकर उन्हें पाने की अभिलाषा करने लगा था . प्रयास भी किया पर रानी ने तमाम क्षत्राणी स्त्रियों के साथ जौहर [आत्मदाह ] कर लिया .  ऐसे में कुछ लोग जो खुद को पवित्र-पवित्र [ कथित धर्मनिरपेक्ष ] चिल्लाते रहते हैं.इसमें हिन्दू चरमपंथ और धर्म को जोड़कर और चटपटा बना रहे हैं .ऐतिहासिक तथ्यों के गलत रूपांतरण या सिनेमा के जरिये पेश करने के मामले को हिन्दू चरमपंथ और हिन्दू धर्म से जोड़ रहे हैं . इस मामले की जाँच होनी चाहिए कि जो भंसाली अपनी कहानी में दिखाना चाहते हैं वह वास्तव में ऐतिहासिक रूप से सत्य है या नहीं .इस पर मौन हैं .बाकी गौण मुद्दे को प्रमुख मुद्दा बना दिए हैं . भंसाली पर जिसने भी हमला किया वह निंदनीय है . ऐसा नहीं होना चाहिए था . कानून को ऐसे लोगों को सजा देनी चाहिए. ऐसे में भंसाली को भी उनकी कहानी पर लोगों के संशय को लेकर  अपना पक्ष रखना चाहिए.आप मारपीट के पक्ष को बढ़ाचढ़ा कर मीडिया में प्रस्तुत कर रहे हो, पर मूल मुद्दे पर मौन हो . बालीबुड के जो लोग भंसाली के पक्ष में विलाप लार रहे हैं उन्हें करनी सेना के आरोपों पर भी भंसाली से खुलेमन से पूछना चाहिए . अन्यथा यह अभिव्यक्ति की आजादी के साथ  बालीवुड द्वारा पक्षपात पूर्ण अनाचार होगा.क्या मनोरंजन  रूपी व्यापार के लिए कला या अभिव्यक्ति के नाम पर इतिहास को तोड़ - मरोड़ कर अपनी सुविधा अनुसार पेश करना  सही है . किसी भी व्यक्ति ,समाज या समूह के सम्मान या गौरव को ठेस पहुँचाना उचित है . यदि नहीं तो संजय लीला भंसाली को भी कटघरे में खड़ा करना होगा  और उनसे जवाब मांगना होगा . अन्यथा ये मानवीय नीचता व पक्षपात होगा .
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