यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 30 अक्टूबर 2016

दीपावली मनाओ





दीपावली मनाओ,दीप जलाओ एक-अनेक.
अंतरतम में दीप ज़लाओ,तो मैं मानूँ.


खुशियों की फुलझड़ियां बरसाओ,निज-निज परिवार.
किसी गरीब को खुस कर जाओ,तो मैं मानूँ.


मेवे और मिठाई ,मोदक खाओ ,खूब खिलाओ.
किसी भूखे का उदर भरो,तो मैं मानूँ.


बम-पटाखे,फोड़ो,उत्सव करो, अनेक-अनेक.
इक निर्धन के होठो पर मुस्कान सजाओ, तो मैं मानूँ.


पैसे खूब कमाओ,खर्च करो,ऐश करो .
कुछ जनहित में भी खर्च करो, तो मैं मानूँ.


दीपावली प्रतीक सत्य का है.
धारण करो ह्रदय में सच को, तो मैं मानूँ.


अंतरतम में दीप ज़लाओ,तो मैं मानूँ.

poetpawan50@gmail.com



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