यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

हमारी दिल्ली यात्रा में शामिल लोग

पिछले दिनों  हमारा दिल्ली जाना हुआ . हमने दिल्ली को फिर से कई साल बाद देखा फिर वही ट्रैफिक सड़क से अधिक वाहन साथ ही साथ यातायात की चरम अनुशासन हीनता. दिल्ली  में प्रारम्भिक मीटर जहाँ 25 रुपये 2 किमी है वहीं मुम्बई में 18 रुपये 1.5 किमी.है  यहाँ ऑटो वालो की दादागिरी बेमिशाल हैं  मीटर से जल्दी जाना नहीं चाहते. मोलभाव हमेशा चलता है . इस मामले में मुम्बई सर्वोत्तम है . दिल्ली मैट्रों  को देखा भी और उससे सफ़र भी किया. मुम्बई लोकल जैसे मुम्बईकरों की यातायात की रीढ़ है कुछ ऐसी ही दिल्ली वालों के लिए मैट्रो बनती जा रही है उसमें भी व्यस्तता के समय में व्यस्त मैट्रो मार्गों पर धक्कमपेल हो गई है . राजीव चौक मैट्रो स्टेशन को देखकर मुझे मुम्बई के दादर जंक्शन की याद आ गयी  जो पश्चिम और मध्य रेल के स्टेशनों को जोड़ता है. इस यात्रा के दौरान हम[ श्री राकेश दुबे, श्री महेश शर्मा और मैं] संसदीय पुस्तकालय गये, वहां एक लम्बी सुरक्षा जाँच से गुजरे. संतुष्टि हुई देश की सुरक्षा की तत्परता देखकर.इन सारी जांचों से गुजरने का एक मात्र अभिप्राय सिर्फ और सिर्फ  वरिष्ठ पत्रकार श्री राहुलदेव जी से मिलने का था . वर्तमान में वे  यहाँ एक वृहद आधिकारिक सरकारी  होने वाले आयोजन के संयोजक  हैं जैसा कि मुझे बातचीत से पता  चला . राहुलदेव जी से मिलना सुखद रहा. विशेष रूप से मेरे लिए... क्योंकि मेरी उनसे प्रथम भेंट थी. राकेशजी ने तो जनसत्ता में उनके सानिध्य में एक दशक तक कार्य किया और राकेश जी माध्यम से ही मिले. राहुल देव जी ने मुझे कई सीख भी दी. जो मेरे लिए बेहद हितकर हैं. ''आवेश'' और ''मैं'' से बचने की सलाह. मैंने शिरोधार्य किया. राहुलदेव जी का व्यक्तित्व सरल व महान है. हिन्दी के प्रति समर्पित हैं.
अब आगे बढ़ते है रामकृष्णपुरम की तरफ संकटमोचन विहिप कार्यालय भाई विनोद बंसल से मिलने 6 बजे मिलना था.  हम महेश शर्मा जी के रिश्तेदार  से मिलकर 5 बजे भजनपुरा से रामकृष्ण पुरम के लिए ऑटो से चल पड़े पहुँचे 7 बजकर 5 मिनट पर. हम तीन मित्र देरी के कारण थोड़ा शर्मिदा से थे पर पहुँचकर जब विनोद जी को फोन किया तो उन्होंने कहा वे गाड़ी पार्क करके आ रहे हैं.हमने राहत महसूस की.तो ऐसा है दिल्ली का ट्रैफिक. हम तीनों मित्रों ने अनेक सामाजिक , धार्मिक ,और पत्रकारिता पर करीब एक घंटे सहज माहौल तक बात किये . अंत में चाय के अंत के साथ विदा लिए तो अगले खुले कक्ष में कुर्ता और धोती लपेटे प्रवीण तोगड़िया जी दो अन्य सज्जनों के साथ बैठे थे  . दोनों ओर से  सस्नेह अभिवादन हुआ और हम आगे बढ़ चले हमें दक्षिण पुरी अपने गन्तव्य पहुंचना था.अब इस यात्रा का आख़िरी और महत्वपूर्ण अंश राहुलदेव जी से  मिलने से पहले हम तीनों मित्र 14 अशोक रोड स्थित श्रीमती मेनका गांधी जी के बंगले पर सुबह साढ़े 10 बजे पहुँचे. निर्धारित समय से आधे घंटे पहले.हमारी भेंट श्री दिनेश पचौरी जी के माध्मय से होनी थी वे बाद में आये पर उन्होंने स्वागतकक्ष में फोन करके हमारे बारे में सूचित कर दिया. इसलिए हमें द्वार के अंदर मोबाईल जमा कराने के साथ की प्रवेश मिला .स्वागतकक्ष में 15 मिनट की प्रतीक्षा के बाद श्री पचौरी जी आये और गर्मजोशी से मिले. तब तक वरुण जी की कोर कमेटी के नौजवान काफी संख्या में आ चुके थे. इनकी श्री वरुणगांधी जी के साथ नियमित तौर पर होनेवाली बैठक थी हमें 11 बजे का समय पचौरी जी ने दिया था पर अब 12 बज रहे थे .हम बेचैन हो रहे थे कि तभी महौल में हलचल हुई . भईया आये, भईया आये की आवाज के साथ.2 मिनट उन्होंने अपने परिचितों से औपचारिक बात की उसके बाद पचौरी जी द्वारा हमारी तरफ ध्यान आकर्षित कराया.मैंने ध्यान से देखा. वरुण जी के केश में सफेदी ने घोसला बना लिया था .सफेदी की इमानदारी पर मुझे एक पल के लिए गर्व हुआ. वो गरीब अमीर का भेदभाव या आरक्षण जैसी चीज नहीं है . हमारी तरफ से  सार्थक वार्ता हमारे अग्रज श्री राकेश दुबे जी ने प्रारम्भ की.  राकेश जी ने जब बताया कि वे एक दशक से अधिक समय तक जनसत्ता से जुड़े रहे तो जनसत्ता की पत्रकारिता वरुण जी तारीफ की. मैं पीछे सोफे पर बैठा था महेश भाई राकेश जी के पास ही बैठे थे.10 मिनट तक राकेश भाई व वरुण जी में संवाद हुआ. राकेश भाई ने बात राजनीति से प्रारम्भ की थी किन्तु वरुण जी ने बात खत्म की सामाजिक चेतना पर उन्होंने शोषित, वंचित गरीब और उनके उत्थान की बात की.जैसा कि उनके बारे में बाह्य धारणा है कि वरुण अख्खड़, क्रोधी व तुनकमिजाज हैं, जहाँ इन दिनों उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री कौन की घुडदौड की चर्चा जोरों पर है जिसमें एक नाम वरुण भी हैं. वरुण की शारीरिक और वाचिक भाषा में ये कहीं परिलक्षित नहीं हुआ. उन्हें दिल्ली में बैठकर भी मुम्बई और उत्तरप्रदेश की बारीक जानकारी है क्षेत्रवार,समुदाय और  पिछड़ेपन के आधार पर सभी क्षेत्रों की जमीनी जानकारी है. अंत में उन्होंने एक शेर कह कर अपनी बात खत्म की .मुझे ठीक से याद नहीं है पर कुछ इस तरह था
 ''मेरा तेरा शीशे का घर मैं भी सोचूं तू भी सोच ,
क्यूँ दोनों के हाथ में पत्थर मैं भी सोचूं तू भी सोच,
क्या तुमको मालूम नहीं था लहरें आती जाती हैं !
फिर क्यूँ लिखा नाम रेत पर मैं भी सोचु तू भी सोच।
ये राजनीति पर उनका व्यंग था. हाँ इतना तो है कि वरुण गांधी अपने फैसले खुद लेते हैं और लेंगे उन्हें कोई अखिलेश नहीं बना सकता और यही मुझे उनकी तत्कालीन कमजोरी नज़र आयी.इसके साथ ही उन्होंने हमारी मुलाक़ात का समय खत्म होने की अपने शैली में इशारा किया क्योंकि अधिसंख्य लोग प्रतीक्षा में थे .अंत में महेश जी  राकेशजी और दिनेश पचौरी जी का आभार जिनके कारण ये दिल्ली  यात्रा सहज हो सकी.

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