यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 1 जनवरी 2023

सुबह की पुतरी पे



सुबह  की पुतरी  पे  धूप जैसे ठहरी हो

दृष्टि पड़े लागे  मुझे कूप जैसी गहरी हो

मेरा जग  कैसा  हो सोचता कभी हूँ जब

स्वयं को अनाज पाऊँ तुम्हें देखूँ डहरी हो

 

सागर की लहर  जैसी लोच तुममें गहरी हो

यौवन  में  प्रेम  का पताका लेके फहरी हो

तुम्हें देखूँ  कांतिहीन  कुंचित  हो  जाता हूँ

मैं  गंदे  बर्तन  सा  तुम  जैसे  महरी  हो

 

अभावों  में  भोजन  में  तुम जैसे तहरी हो

जीवन में मेरे  तुम  फूल  जैसे  भहरी  हो

गली - गली  कितना  पुकारा  है  हिय मेरा

ध्वनि मेरी कम या कि तुम ही कुछ बहरी हो

 

मैं  हूँ  देहाती  जी  तुम  जैसे  शहरी  हो

मैं  कच्ची  नाली  सा तुम बड़की नहरी हो

तुम कुछ भी समझो पर समझा हूँ मैं ऐसा

मैं  हूँ  कृषक  ठेठ  तुम  फसल  हरी  हो

 

पवन तिवारी

०१/०१/२०२३

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