यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 15 अगस्त 2022

मैं आमुख हूँ तुम कथा प्रिये



मैं  आमुख  हूँ  तुम  कथा  प्रिये

तुम  ही  वांछित  सर्वथा  प्रिये

मुझको तथापि तुम ना समझी

यही मूल  है  मेरी व्यथा प्रिये

 

मेरे   जीवन   की   त्राता   हो

तुम   प्रेम  हर्ष  की  दाता  हो

जीवन भर सुख दुःख के साथी

ऐसे  निर्मित निज  नाता  हो

 

है जग से बहुत मिला शोषण

तुमसे मिल जाय  पृष्ठ पोषण

पुनि सभी निरादर सह लूँगा

हिय को मिल जाएगा तोषण

 

मैं  कौतुक  ना  करना  चाहूँ

यौतुक  भी  कोई  ना  चाहूँ

बस एक मनोरथ केवल तुम

जीयूँ  संग  में  मरना  चाहूँ

 

पवन तिवारी

१४/०८/२०२२  

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय पपवन।शब्दों का चयन अत्यंत मनमोहक है।अनुराग रस पगी रचना 👌👌👌🙏

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    1. धन्यवाद रेणु जी, प्रशंसा एवं प्रोत्साहन हेतु👏💐💐💐

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