यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 30 जुलाई 2022

दिन कटता है तो, संध्या उलझ जाती है

दिन कटता है तो,

संध्या उलझ जाती है .

वो कटती है तो,

रात उलझ जाती है.

इसमें नन्हा दीपक

लड़ते हुए फँसकर

मर जाता है.

बचाते - बचाते

बाती जल जाती है !

और तो और; दीया,

काली हो जाती है.

ज़िंदगी जब

रूठकर आती है ,

पीड़ा भी ठीक से

नहीं बतियाती है.

फिर, आँख गरियाती है.

लगातार झरती जाती है.

समय की मार

इस तरह सताती है .

ज़िंदगी, ज़िंदगी से घबराती है.

मौत पास होकर भी

छूने से घबराती है .

तभी अंदर से

जीने की ज़िद

आवाज़ देती है !

फिर तो,

दुनिया ही बदल जाती है.

 

पवन तिवारी

१९/०६/ २०२२

  

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