यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 28 जुलाई 2022

एक अकेलापन भारी है

एक   अकेलापन   भारी    है

अच्छा  है  खुद  से  यारी  है

खिड़की  छत   दीवारें हैं

बात – चीत  इनसे  जारी है

 

अदना   एक  रसोई  खाना

उससे भी  तो है बतियाना

तरकारी और दाल का झगड़ा

बोलो  किसको  आज पकाना

 

बर्तन  भी  तो  खुद धोना है

नहीं  मगर  आपा  खोना है

माना  एक  कलेजा  भी  है

रोने  का भी  इक कोना है

 

बाहर  में   अच्छा   दिखना है

समय के साथ में भी भगना है

कलम   से ब्याह रचा आये हो

अधरों  पर  उसके लिखना है

 

कागज  कलम भी एक साधना

कठिन बड़ा है खुद को बाँधना

जान  पे  आफत  आ सकती है

मुश्किल है  ज्यों  ऊँट नाधना

 

शब्दों का पथ   बड़ा नुकीला

जैसे   रेगिस्तान   में   टीला

फिर भी यदि तुम डटे रहे तो

होगी पवन सिद्ध  फिर लीला

 

पवन तिवारी

३०/०४/२०२२    

 

 

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