इस  युग  की  ये  कैसी
 अभिलाषायें  है 
सबसे
 मोहक  धूर्तों  की  ही  अदायें  हैं
माया
 से  ही  सबने
 हैं  अनुबंध   किये 
जिसकी    सारी    संतानें 
  पीड़ाएं  हैं 
छल
प्रपंच सच को मिलकर उलझाए हैं 
लोग
 झूठ  के  गीत  ख़ुशी  से
 गाये  हैं 
झूठ
का नाटक अच्छा लगता है सच से 
लोग
उसी पर तन  मन धन बरसाये हैं 
सत्य
सुपथ पर पग-पग पर बाधाएं हैं 
इसीलिये
 गिनती के कुछ पद आये हैं 
झूठ
पाप के द्वार लगी अवली अतुलित 
उसकी    ऐसी   आकर्षक   मुद्रायें   हैं 
सत्य
पे अत्याचार सभी ने ढाए हैं 
सत्य
पे हर मौसम में बादल छाये हैं 
फिर
भी सत्य, सत्य सा अडिग खड़ा रहता 
अंत
में सब उसके चरणों में धाये हैं 
पवन
तिवारी 
२/११/२०२१
५/०५/२२
 
 
 
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