गुरुवार, 28 जुलाई 2022

इस युग की ये

इस  युग  की  ये  कैसी  अभिलाषायें  है

सबसे  मोहक  धूर्तों  की  ही  अदायें  हैं

माया  से  ही  सबने  हैं  अनुबंध   किये

जिसकी    सारी    संतानें    पीड़ाएं  हैं

 

छल प्रपंच सच को मिलकर उलझाए हैं

लोग  झूठ  के  गीत  ख़ुशी  से  गाये  हैं

झूठ का नाटक अच्छा लगता है सच से

लोग उसी पर तन  मन धन बरसाये हैं

 

सत्य सुपथ पर पग-पग पर बाधाएं हैं

इसीलिये  गिनती के कुछ पद आये हैं

झूठ पाप के द्वार लगी अवली अतुलित

उसकी    ऐसी   आकर्षक   मुद्रायें   हैं

 

सत्य पे अत्याचार सभी ने ढाए हैं

सत्य पे हर मौसम में बादल छाये हैं

फिर भी सत्य, सत्य सा अडिग खड़ा रहता

अंत में सब उसके चरणों में धाये हैं

 

पवन तिवारी

२/११/२०२१

५/०५/२२

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें