गुरुवार, 28 जुलाई 2022

ज़िंदगी से रही

ज़िंदगी से रही एक अभिलाषा बस

प्रेम  सच्चा  मिले  बात  इतनी  कही

ये   घुमाती  रही  इतने भर के लिए

कितना अपमान और बतकही भी सही

एक अभिलाषा  का दंड इतना बड़ा

प्रेम सच्छा  मिले  बात  इतनी कही

 

तू  घुमाती रही  इस नगर उस नगर

तुझपे  विश्वास  कर  बाँह  तेरी गही

हर नगर ठोकरें हर  नगर छल मिले

प्रेम  की जम सकी  ना कहीं ना दही

हाय  पूरी  जवानी  मेरी  छीन  ली

प्रेम  सच्चा  मिले  बात  इतनी  कही

 

मौत  से भी  भयानक  तू है ज़िन्दगी

तेरे  चक्कर  में  भटके  हैं  सारी मही

रोज तिल-तिल  मुझे मारती तू रही

सच  यही  था बता देती पहले यही

ज़िन्दगी इसमें ही ज़िन्दगी खा गयी

प्रेम  सच्चा  मिले  बात  इतनी कही

 

मृत्यु   ही  सत्य  है ज़िन्दगी  बस  भरम

प्रेम  सुंदर  सा छल कर लो जो बतकही

एक  सच  के   लिए  है   घुमाया  बहुत

बात सब खुल गयी कुछ भी ना अनकही

मृत्यु  ही  ध्येय   है   ज़िंदगी  का  परम

प्रेम    सच्चा   मिले   बात  इतनी   कही

 

 

पवन तिवारी

०६/०५/२०२२

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