यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 27 जुलाई 2022

देख रहे हैं हम भी सपने

 

देख  रहे  हैं   हम  भी  सपने

औरों   सा   पूरा   करना  है

कर्म  प्रधान तो  प्रभु बोले हैं

करो कर्म फिर क्या डरना है

 

जिनके   सपने  सत्य  हुए हैं

उनसे  बस  साहस लेना   है

शेष तो अपनी मेहनत के बल

औरों   को   संबल  देना  है

 

गीले   नैनों   में   खुशहाली

के  फिर  पुष्प   खिलाने  हैं

बुझे बुझे कोमल चेहरों को

भी   सम्मान   दिलाने   हैं

 

मान  रहे  हैं, जान रहे  हैं

अपने  भी   दिन  आने  हैं

बस तिथि भर का भान नहीं है

लोग  हमें  भी   गाने   हैं

 

लड़ते - लड़ते   बढ़ते  रहना

हिय   से   हमने    ठाने   हैं

जिनको जो कुछ कहना कह लें

हम  तो  इक  दिन छाने हैं

 

पवन तिवारी

२५/०४/२०२२  

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