यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 4 जून 2022

कहने पे कहते

कहने  पे   कहते    जमाने  पड़े  हैं

पड़ी  मार  जुमले  भुलाने  पड़े  हैं

 

नया दौर भी ऐसा मज़मों का आया

अदीबों को भी  अब  रिझाने पड़े हैं

 

लगाने की आदत थी इनकी पुरानी

जो  खुद  में  लगी तो बुझाने पड़े हैं

 

गिराने  में  इनको मज़ा ख़ूब आता

गिरे  ख़ुद  कि  ऐसे  उठाने  पड़े हैं

 

मोहब्बत में हमको मोहब्बत की खातिर

मोहब्बत  के  सब  ख़त  जलाने पड़े हैं

 

चेहरे से ज्यादा अदा उसकी अच्छी

मीलों   से    पीछे  दीवाने  पड़े हैं

 

सियासत का व्यापार जब से चला है

निठल्लों  के  भी  सर  दबाने  पड़े हैं

 

बड़ी मौज की बाप की हैसियत पर

मगर दिन जो बदले  कमाने पड़े हैं

 

पवन तिवारी

२६/०७/२०२१  

 

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