कहने  पे  
कहते    जमाने  पड़े 
हैं 
पड़ी  मार 
जुमले  भुलाने  पड़े 
हैं 
नया
दौर भी ऐसा मज़मों का आया 
अदीबों
को भी  अब 
रिझाने पड़े हैं
लगाने
की आदत थी इनकी पुरानी
जो  खुद  में
 लगी तो बुझाने पड़े हैं 
गिराने
 में  इनको मज़ा ख़ूब आता 
गिरे
 ख़ुद  कि  ऐसे  उठाने  पड़े हैं 
मोहब्बत
में हमको मोहब्बत की खातिर 
मोहब्बत
 के  सब  ख़त  जलाने पड़े हैं 
चेहरे
से ज्यादा अदा उसकी अच्छी 
मीलों   से    पीछे 
दीवाने  पड़े हैं
सियासत
का व्यापार जब से चला है 
निठल्लों
 के  भी  सर  दबाने 
पड़े हैं 
बड़ी
मौज की बाप की हैसियत पर 
मगर
दिन जो बदले  कमाने पड़े हैं 
पवन
तिवारी 
२६/०७/२०२१
 
 
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