यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 8 जून 2022

थोड़े - थोड़े मटमैले से

थोड़े - थोड़े  मटमैले  से   धूसर  - धूसर  बादल  हैं

बरस रहे हैं टुप टिप टुप टिप भीगे माँ के आँचल हैं

धीरे - धीरे गरज  रहे  हैं  घेर  रहे  हैं  धीरे – धीरे

बच्चे  उछल  कूदकर भीगें  इनके  प्रेम  में  पागल हैं

 

मेढक निकल  पड़े  हैं  घर  से  और  केंचुए मस्ती में

गली  में  बना जलाशय बच्चे  तैरें मिलकर बस्ती में

बड़े लोग थोड़े उदास  हैं  पर पानी की ख़ुशी भी है

बच्चे  खेल  रहे  खुश  होकर  कागज वाली कश्ती में

 

हल्की - हल्की ठंड  लग रही बादल तुम्हरे आने से

धूप  हमेशा डरती  रहती  तुम्हरे  हँसकर गाने से

तुम आते  आनन्द  बढ़ाते  शीतलता बढ़ जाती है

धूप  की  गुंडागर्दी  बढ़ती  अक्सर तुम्हरे जाने से

 

तुम जग में जल के दानी हो तुम हिय से निर्मल पानी हो

कोई कुछ भी कह ले पर तुम  अम्बर के राजा रानी हो

केवल तुम्हीं  मही  को   तृप्ति  दे  पाते  हो इस जग में

तुम्हरे बिन संसार अकल्पित जीवन मंत्र के तुम ज्ञानी हो

 

पवन तिवारी

१२/०८/२०२१

  

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