यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 30 मई 2022

जहाँ तुम्हें कीचड़ दिखता है

जहाँ तुम्हें कीचड़ दिखता है वहाँ हम धान उगाते हैं

जहाँ  तुम्हें  ढेला दिखता है वहाँ हम मान उगाते है

हो  डरते  धूल  से  जिस  तुम  उसे  माथे लगाते हैं

है  उसमें गाँव  की  ख़ुशबू  हम  उसके संग गाते हैं

 

तुम्हें  निर्जन  लगें  जो  खेत उसमें जान बसती है

बड़ा  आनंद  आता  है  जो  सोंधी  गंध  उठती है

फसल जब  लहलहाती है कभी मेंड़ों से देखो तुम

इन्हें है  देखना तो नगर  के  चश्में को फेंको तुम

 

तुम्हें  सचाई  अल्हड़ता  दिखेगी   संस्कृति  अपनी

कि भारत गाँव में बसता इसी में पुण्य गति अपनी

जरा ठहरो यहाँ कुछ दिन यहाँ की शाम को सुनना

यहाँ  की  सादगी  देखो  थोड़ी  मासूमियत चुनना

 

नगर जाने  से  पहले  थोड़ा  लेना  आदमीयत तुम

गाँव को एक दिन हँसकर करोगे सब वसीयत तुम

अभी  तुम पर चढ़ी है धुन नगर की जान पाये तो

नगर जाना  कभी  भी ना सदा दोगे नसीहत तुम   

 

पवन तिवारी  

१२/०८/२०२१

 

 

 

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