यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 25 अप्रैल 2022

दुःख से भरे हैं

दुःख से भरे हैं  सुख प्यासे हैं

चेहरे    बहुत     रुआँसे    हैं

जीवन  अंदर   खोजें  बाहर

गाँव  से   नगर   तलाशे   हैं

 

स्वारथ जहाँ  वही  साधे हैं

उनको   ही   कंधे  लादे  हैं

बोझिल है दुःख वर्तमान से

सुख  की   केवल   यादें  हैं

 

विश्वासों  की  हानि हुई है

हर रिश्ता  अब छुईमुई है

मिलते हैं प्रपंच छल पग पग

चुभते हैं ज्यों सूक्ष्म सुई है

 

चारो  ओर   अँधेरा  लगता

शक का मात्र  बसेरा लगता

ऐसे में कोई  जिए भी  कैसे

हर कोई चतुर सपेरा लगता

 

जीना है तो धैर्य को धर लो

संघर्षों   को  साथी  वर  लो

परिणामों की छोड़ के चिंता

बढ़ते रहने की जिद  कर लो

 

फिर कुछ ना कुछ सुखमय होगा

कुछ  उन्नति तो  कुछ क्षय होगा

जिजीविषा  को   पाले  रखना

सहज ही पथ  लम्बा तय होगा

 

 

पवन तिवारी

१३/०४/२०२१         

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