यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

जाड़े वाली धूप का स्वाद

जाड़े वाली धूप का स्वाद भी बड़ा रसीला है

जाड़े का भी  रंग  कहाँ  कम बड़ा छबीला है

चने का साग कहीं सकपहिता कहीं मजे का भुरता

रंग   बिरंगा  स्वेटर  टोपी   बड़ा  रंगीला  है

 

गर्म-गर्म गुड़  भूना  आलू  मटर का क्या कहना

सुबह  शाम  दोनों बेला ही आग  के संग रहना

कुल्हड़ वाली चाय की  चुस्की रह रह कर लेना

सी - सी करना ठंडी – ठंडी हवा को भी सहना

 

बिना बजाये दांत बजे और काँप उठे सब रोयें

जाड़े के आतंक के  कारण  मुँह तक  ना  धोयें

और  नहाना  हप्तों  तक  ना हाथ  पैर  धोना

और  रजाई  के आँचल  में  देर   तलक  सोये

 

जाड़े का बाजे जब बाजा तब सब खाना खायें ताज़ा

सब पूरे परिधान में दिखे  जैसे  सबके  सब हैं राजा

जाड़े की महिमा न्यारी है  जितना  खाते  पच जाते

देख समोसा गरम पकौड़ी  जीभ कहे आजा - आजा   

 

पवन तिवारी

२५/१२/२०२०

  

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