यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 28 सितंबर 2021

स्वयं पर भरोसा

जिनके  माथे चंदन घिसते

वस्त्रों  से बदलते वे रिश्ते

आवरण का खेल निराला है

झूठे  मँहगे  सच्चे  सस्ते

 

छोटों के बड़े – बड़े  बसते

शातिर ही हैं  ताने  कसते

तुम्हें रस्ते पर  हमला देंगे

जो कहते ख़ुद आये  रस्ते

 

जो  संघर्षो   में अकेले  थे

दिन फिरे तो संग-२ मेले थे

स्वारथ की  जीभ सर्वव्यापी

जो गुरू थे बन  गये चेले थे

 

जिनकी गठरी है  अर्थ  भरी

उनकी मेहरी जग भर से हरी

जो  तकलीफों  में  निर्धन हैं

सबकी  भौजी  उनकी  मेहरी

 

सो श्रम व स्वेद को साथ रखो

और जगन्नाथ निज हाथ रखो

दृढ़ता   रखना   बढ़ते  रहना

केवल हरि द्वार  पे माथ रखो

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

०१/१०/२०२०   

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