यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 1 अगस्त 2021

जिसका वादा था जिंदगी भर का

जिसका वादा था जिंदगी भर का

ना हुआ मेरा ना मेरे घर का

वाडे भी अब हवा के जैसे हुए

ना ठिकाना ही ना किसी दर का

 

हर जगह शक का बसेरा मिलता

बड़ी मुश्किल  से  सबेरा मिलता

अब भरोसे  का  भरोसा  न रहा

अब तो मतलब का ही घेरा मिलता

 

रिश्ते  के  उम्र का अनुमान नहीं

निभ  रहे  हैं मगर है मान नहीं

रिश्तों  की  डोर  टूट  जाती  है

त्याग का  शेष है  अरमान  नहीं

 

अब तो रिश्ते  चलेंगे स्वारथ  के

दुःख उठायेंगे  सत्य  के  पथ के

खुद को चाहो भरोसा खुद से करो

लोग  साथी  बनेंगे   समरथ  के

 

पवन तिवारी

संवाद - ७७१८०८०९७८

 

२१/०८/२०२०   

 

 

 

 

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