यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 21 जून 2021

पहले मैं संध्या को आता

पहले मैं  संध्या को आता

सबसे पहले  दिया जलाता

दोनों में  अभिवादन  होता

दोनों का चेहरा खिल जाता

 

अब दोनों उदास मिलते हैं

ख़ुद में ही  दोनों जलते हैं

है अपराध बोध  दीपक को

मेरे  चुप से  वे  घुलते हैं

 

उसने मुझको  गलते देखा

अपनों द्वारा  छलते देखा

मेरे  चेहरे  की  आभा को

उसने  केवल  ढलते  देखा   

 

अब दीपक पे नज़र जो जाती

उसकी  लौ  मद्धम हो जाती

उसके लौ की सहज ही मस्ती

मुझे  देखते  ही  खो  जाती

 

खुद की करता खुद निंदा है

ज़रा - ज़रा सा ही ज़िन्दा है

षड्यंत्रों को  देख के चुप था

इसीलिये   वो   शर्मिंदा  है

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

३१/०७/२०२०

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