यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 10 मार्च 2020

आज-कल मेरे पास काम बहुत थोड़ा है .


आज-कल मेरे पास
काम बहुत थोड़ा है .
पर कोई कोई कहता है,
आप तो,
बहुत काम करते हैं.
कवितायेँ लिखना,
कहानी लिखना,
लोगों को सुनाना,
सोचना  और
अपने लिखे हुए को
पढ़ कर हँसना ! खुश होना ;
और अपने आप से
ख़ूब बातें करना, झगड़ना
यदि इसे काम मानते हैं तो
फिर मेरे पास बहुत काम है.

वैसे तो उसके पास भी
बहुत काम है.
पर कोई कोई कहता है ?
उसके पास काम नहीं है.
देश को, संस्कृति को, राजनीति को,

अपने से आगे बढ़ते लोगों को
अगर गाली देना,
उनकी निंदा करना, कोसना और
उन पर खर्च कर देना पूरी स्याही
बिना किसी कहानी, कविता
या सार्थकता के,
तो फिर उसके पास बहुत काम है.
उसकी तुलना में तो, मेरे बारे में,
वो कहावत बिल्कुल ठीक है.
“घर बैठा है”
ऐसे में मुझे मेरा घर बैठना
अच्छा लगता है.
हाँ, इस पर भी अगर आप
दागते हैं प्रश्न तो
क्षमा करें,
मैं आप को कोई उत्तर नहीं दूँगा.

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

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