यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 28 सितंबर 2019

यूँ ही बे-काम



यूँ ही बेकाम हाल लो तो ज़रा
आते–जाते कभी मिलो तो ज़रा

बात से बात  सुलझ जाती है
बात में बात कोई हो तो ज़रा

जड़ का तगमा उछाल सकते हो
बात मानों मेरी हिलो तो ज़रा

बिना मौसम भी मज़ा आता है 
सुनो बे-मौसम भी खिलो तो ज़रा

जीतने का मज़ा लेना है अगर
हारने का भी मज़ा लो तो ज़रा

मज़ा ख़याल का लेना है अगर
चलते-चलते पवन रुको तो ज़रा

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत     

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