यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2018

मैंने देखा है सड़कों पर बिखरा जीवन

















मैंने देखा है सड़कों पर बिखरा जीवन
स्वच्छंद , आवारा उड़ता - उड़ता मन
भीख माँग कर जीवन को वो पकड़ रहे
उनकी जिजीविषा ही उनका सच्चा धन


वे कबीर से आज – आज  में  जीते हैं
चौराहे  फुटपाथ   गली  में  बीते  हैं  
खुले व्योम , अधखुले बदन हैं सोते वे
ऐसे  भी  जो खुशी से जीवन  सीते हैं


महल  अटारी  वाले  इनसे कुछ सीखें
इतना  होकर हाय - हाय में क्यों बीतें
जो  थोड़े  महलों के नयन  होते नीचे
ऐसे  में  चिंता  के गरल  ना वो पीते  


अपने  नयन पसारो  थोड़ा जग देखो
अहंकार  वाले अपने नख सिख फेंको
फिर  जीवन  जीवन जैसा हो जाएगा
छोटे बड़े  की रेखाएं ना केवल  खेंचो


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें