यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 9 सितंबर 2018

प्रेम क्या हुआ कि सजे



प्रेम क्या हुआ कि सजे स्वर साधना के
भाव  जागे   मन   में  हैं  आराधना  के
आज - कल स्व में मगन ऐसा हुआ हूँ
जैसे कि  रचने लगा  ऋचा  वन्दना के

जो भी थे अवसाद गायब हो गये
मुदित  सारे  पुष्प  उर के हो गये
चंहु  दिशा संगीत सा बजने लगा
जगत  में सब मीत जैसे हो गये

जो भी बिगड़े काम थे सब हो गये
प्रेम  से   बैरी   भी  अपने  हो  गये
प्रेम   ने   सद्भावना   के  बीज  बोये
वास्तव में अब मनुज हम हो गये

कृष्ण कैसे  मदन मोहन हो गये
मनुज  होकर  देव  कैसे हो गये
प्रेम को पाला उन्होंने उर में जो
इसलिए भगवान सबके हो गये

पवन तिवारी
संवाद- ७७१८०८०९७८
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें