यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

मैं हूँ भाषा तुम हो मेरा व्याकरण














मैं  हूँ  भाषा तुम हो मेरा व्याकरण
प्रेम  का तुमसे ही सीखा  आचरण
मैं था वर्षा तुम शरद बन के जो आयी
बन  गया  जीवन  सुनहरा उद्धरण

प्रेम   से   तुमने   हराया   क्रोध   को
तुमसे  सीखा  जिन्दगी  के बोध को
प्रेम  से जग  को है जीता  जा सके
सिद्ध कर दिया प्रेम के इस शोध को

करना  चाहूँ  मैं  तुम्हारा अनुकरण
सब तुम्हारे गुणों का कर लूँ वरण
तुम जो आयी भवन से गृह हो गया
हो  गया  सारे दुखों का निराकरण

प्रेम  से  कुछ  उभर आये गीत हैं
लगता है दीवार, खिड़की मीत  है
मीठी तानों का हुआ आदी श्रवण
सब  तुम्हारे  प्रेम  से हुए प्रीत हैं


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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