यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

ये नैना डसते,ये नैना ठगते





















ये नैना डसते,ये नैना ठगते.

ये नैना करते निहाल हैं


नैनों की लत लग जाए तो
नयनों के बिन बेहाल हैं

नैना जो लिखते इबारत निराली
नैना जो हँसते–हँसी प्यारी-प्यारी

नैनों की होती ये प्यारी कटारी
घायल हुई जाँ हमारी - तुम्हारी   

नैनों को जादू है नैना ये छलिया
इनमें फँसकर इन्हीं का हो लिया

नैनों की भाषा है सबसे निराली 
नैनों की बातें गज़ब प्यारी-प्यारी

अधरों के खुलने पे भय हो जहां पर 
बतियाते बेखौफ नैना वहां पर

मजबूर होकर अधर चुप हुए जब
अधरों के काम किये नैन तब-तब
  
जैसे तुम्हारा मैं और तुम हमारे
वैसे ही साथी ये नैना हमारे

प्यार की कश्ती इन्ही के सहारे
इन नैनों ने ही किये वारे न्यारे

पवन तिवारी
सम्पर्क  - 7718080978
poetpawan50@gmail.com

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