यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 5 नवंबर 2016

एनडीटीवी प्रतिबन्ध - मीडिया के लिए आत्ममंथन का दौर

एनडीटीवी पर लगे एक दिवसीय प्रतिबन्ध पर उनके साथियों ने आसमान सर पर उठा लिया है.मीडिया की हत्या और आपातकाल जैसे हालात की बातें कर रहे हैं.गालियाँ भी दे रहे हैं, कोस रहे हैं,धिक्कार रहे हैं. आराम से वातानुकूलित कमरों में बैठकर और सरकार शांत है. यही है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता.कई ऐसे भी हैं जो आपातकाल के समय माँ के आंचल में रहे होंगे. आपातकाल होता तो तोते की तरह-पटर-पटर नहीं कर रहे होते.किसी सीलन भरी बदबूदार अंधेरी कोठारी में सिसक रहे होते. रही लोकतंत्र के हत्या की... तो आप का ही समाज लोकतंत्र ही नहीं पूरे राष्ट्र की अस्मिता और कानून की हत्या रहा है. आज से नहीं बल्कि 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान सीधा प्रसारण कर. जिससे दुश्मनों ने हमारे वीर जवानों को मारा.उन्हें वास्तविक स्थिति का अंदाज़ा लग गया. उसमें एनडीटीवी की बरखादत्त की बड़ी भूमिका थी.उसी वक्त इन्हें प्रतिबंधित करना चाहिए था.देश है तो सब हैं ,देश ही नहीं रहेगा तो तुम कहाँ रहोगे. कोई लोग तो लोकतंत्र के चौथा स्तम्भ के ढहने और उस की हत्या का आरोप लगा रहें हैं. उन्हें पता ही नहीं कि लोकतंत्र के तीन ही स्तम्भ हैं. कार्यपालिका,न्यायपालिका और विधायिका.फिर आप कहाँ से पैदा हो गये.संविधान में आप कहीं नहीं हो. हाँ एक समय पत्रकारिता के राष्ट्रवादी पत्रकारिता को देखकर उसकी प्रसंशा के तौरपर उसे चौथा स्तम्भ कहा गया था.तब तुम्हारा ये मीडिया गर्भ में भी नहीं आया था. 26/11 ताजमहल आतंकी घटना इतनी लम्बी क्यों खींची इन्हीं  इन्हीं कथित चौथे स्तम्भ के गद्दारों के सीधा प्रसारण के कारण, आतंकी समाचार चैनल देखकर अपनी स्थिति बदल रहे थे और बेगुनाहों को मार रहे थे. एक संस्था है- न्यूज़ ब्रोडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथोरिटी एक दूसरी संस्था है एडिटर्स गिल्ड ये भी छाती पीट रहे हैं.इनका कहना है.हम एक जिम्मेदार संस्था है.इस प्रकार का कदम उठाने से पहले सरकार एक बार हमसे सलाह मशविरा कर लेती. कारगिल और 26/11 पर पर ये कोमा में थे. न्यूज़ ब्रोडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथोरिटी तो कारगिल के समय पैदा ही नहीं हुई थी.इसकी अभिव्यक्ति सबसे महत्वपूर्ण शेष लोग मरें देश बर्बाद हो तो हो. ये खुद को समाचार के देव कहते हैं और दिखाते हैं शीला की जवानी,कोमेडी नाईट और भी बहुत कुछ जैसे –लाल किताब ,जन्म कुण्डली ,सिद्ध हनुमान यंत्र,हकीम उस्मानी, सिद्धू स्पीकिंग कोर्स और भी चमत्कार ये सब कमाई और टीआरपी के लिए इनका देश और समाचार से कोई लेना देना नहीं.इसके लिए समाचार चैनल का लाइसेंस लेते हैं.किसी मंच पर किसी नाच को जिसे कुछ सौ या हजार लोगों ने 5-10 मिनट देखा होगा उसे अश्लील कहकर आप दिनभर चलाते हो. उसे करोडो लोग देखते हैं.ये अश्लीलता फैलाना नहीं है. इससे पहले भी कई चैनलों प्रतिबन्ध लगे हैं जिन्होंने प्रसारण संबंधी कानून को तोड़ा है.जिनमें
एएक्सएन पर दो महीने का बैन
 17 जनवरी 2007 को अश्लील प्रोग्राम दिखाने पर सरकार ने एएक्सएन चैनल के प्रसारण पर दो महीने के लिए बैन लगा दिया था।
एफटीवी इंडिया पर दो महीने का प्रतिबंध
 29 मार्च 2007 को भारत सरकार ने फैशन टीवी इंडिया के प्रसारण पर दो महीने का प्रतिबंध लगाया था।
 सिने वर्ल्ड पर एक महीने का बैन
24 मार्च 2005 को सरकार ने एक सिनेमा चैनल सिने वर्ल्ड पर बैन लगाकर इसका प्रसारण एक महीने के लिए बंद कर दिया था।
अल जजीरा पर 5 दिन का बैन
भारत सरकार ने 10 अप्रैल 2015 को अल जजीरा चैनल का प्रसारण पांच दिन के लिए रोक दिया था।
जनमत चैनल पर 30 दिन का प्रतिबंध
19 सितंबर 2007 को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने जनमत चैनल पर एक महीने का प्रतिबंध लगा दिया था।
तब क्या ये लोग जिन्दा नहीं थे या तब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कोई मतलब नहीं था.
जब IBN7 से 300 से ज़्यादा लोगों को निकाल दिया गया । NDTV को एक दिन के लिए काला किया जा रहा है तो आप छाती पीट रहे हैं । उस समय आशुतोष गुप्ता सम्पादक थे जो अब आप पार्टी में गला फाड़ते हैं.तब वे गूंगे हो गये थे यही नहीं सहारा में महीनों से लोग बिना सैलरी पाए काम कर रहे हैं । वो नहीं दिख रहा है आपको । कुकुरमुत्तों की तरह नए चैनल आते हैं और बंद हो जाते हैं । हज़ारों पत्रकार बेरोज़गार हो जाते हैं । और आप मौन साधे रह जाते हैं । छोटी-छोटी गलतियों पर पत्रकारों को नौकरी से निकाल दिया जाता है । तब चैनल मालिक के ख़िलाफ एकजुटता दिखाने की बजाय आप अपनी कुर्सी से चिपके रह जाते हैं । ये दोहरा चरित्र क्यों? जवाब नहीं देंगे आप । मैं बताता हूं क्यों । क्योंकि जब चैनल मालिक आपसे घाटे का रोना रोते हैं । तब आप उन्हे cost cutting की घुट्टी पिलाते है । 10 पत्रकारों को निकलवाकर 20 का काम 10 से करवाते हैं । और जब तक आपको लात पड़ती है । तब तक दिल्ली-NCR में आपकी 4 कोठियां तन चुकी होती हैं । और वो 15 हज़ार पाने वाला पत्रकार दर-दर की ठोकरें खा रहा होता है । तब आपको चौथा स्तम्भ दम तोड़ते हुए नहीं दिखता है । और आज चौथे स्तंभ को बचाने के लिए आप उन्हीं शोषित पत्रकारों से एकजुट होने की अपील कर रहे हैं । कल को मीडिया के ये महापुरुष आपके साथ भी यही करेंगे । ध्यान रखिएगा । इसलिए लड़ाई लड़नी है तो पहले मीडिया के भीतर की इस बुराई से लड़ाई लड़िए  सबसे अधिक हानि पत्रकारिता का अगर किसी ने किया तो इन टीवी वालों ने पत्रकारिता को इन्होने ही मीडिया बनाया . मीडिया पत्रकारिता में जमीन आसमान का अंतर है अधिक जानना है तो मेरे ब्लॉग पर इस लेख को पढ़िए http://pawanchvannikamela.blogspot.in/2016/02/blog-post.html
 वास्तव में एक मौका है मीडिया के लिए ...आत्मचिंतन करने का. अपने भीतर झांकने का, एक दिन का प्रतिबन्ध एक सांकेतिक चेतावनी है. सुधर जाइए, अब आप की मनमानी नहीं चलेगी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर,देश के साथ खिलवाड़ अब नहीं .सभी प्रसार माध्यमों को गम्भीरता पूर्वक सोंचना चाहिए कि आखिर इस दिन के आने की नौबत ही क्यों आई. थोड़े समय के लिए कोसना छोड़कर अपने अंतरतम में झांकने का साहस करिये.प्रश्न पूछते-पूछते ,आलोचना करते करते खुद से सवाल करने का ढंग मीडिया और उसके लोग भूल गये हैं .सरकार ने याद दिलाया तो खफा हो गये जनाब.
   एनडीटीवी इंडिया पर लगे एक दिन के बैन को न्यायसंगत बताते हुए केंद्रीय मंत्री वैंकेया नायडू ने कहा कि यह कदम राष्ट्र की सुरक्षा के मद्देनज़र उठाया गया है. सूचना एवं प्रसारण मंत्री नायडू ने शनिवार की सुबह दिए बयान में कहा 'एक टीवी चैनल को एक दिन के लिए बंद करने की कार्यवाही देश की सुरक्षा को ध्यान में रखकर उठाया गया है.'

बता दें कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आने वाले बुधवार को एनडीटीवी इंडिया के प्रसारण पर एक दिन के लिए रोक लगाने का आदेश दिया है. मंत्रालय ने पठानकोट हमले के दौरान चैनल द्वारा किए गए कवरेज पर आपत्ति जताते हुए सज़ा के तौर पर यह प्रतिबंध लगाया है.

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