बात बात पर बैठे ही मैं कविता लिख देता था
हँसते – हँसते दुर्लभ
प्रश्नों के उत्तर देता था
वही पवन हूँ आज एक ना शब्द फूटते हैं
बाऊ के संकेत मात्र
से सब कर देता
था
हुआ समय परिवर्तित पूरा बुद्धू हो गया हूँ
मुझसे ही मैं विलग हुआ सा जैसे खो गया हूँ
बाऊ जी मन में
मुझको सौ बार पुकारे होंगे
इसीलिये परसों से ही सौ बार मैं रो गया हूँ
शब्द साधना किया बहुत पर अर्थ कहीं रूठा है
इसी एक कारण से
ही संबंध बहुत टूटा है
बहुत हुए अपमान आज तो मन अपमानित है
सम्बन्धों का शेष आज अंतिम घट भी फूटा है
आयेगा फिर काल किंतु
बाऊ जी ना होंगे
होगी जय जयकार किंतु बाऊ जी ना होंगे
लौट के आयेंगे भूले
सारे शुभ चिंतक फिर
हम चेहरे पहचान के भी अनजान बने होंगे
धरा गोल है समय लौट के आयेगा इक दिन
फिर शब्दों का अर्चन होगा आयेगा इक दिन
गायत्री का तेज वेद
बन फिर से फूटेगा
स्वागत हेतु अरुण रथ लेकर आयेगा इक दिन
पवन तिवारी
०९/११/२०२४
बाऊ जी को पीजीआई से स्वास्थ्य सेवा में असमर्थता जताने पर
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